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________________ हुई, अनल-सामान्य, इसके सिवाय स्फुलिङ्ग बडवानल नन्दीश्वरधुमकुण्ड, और अग्निकुमारोंकी मुकुटानल आदि अग्निकायिक जीवोंके अनेक भेद हैं जिनकी कि यतियोको रक्षा करनी चाहिये । वायुकायिकके भेद- . बनगार वात उद्भवकश्चान्य उत्कलिर्मण्डलिस्तथा। महान् घनस्तनुगुञ्जास्ते पाल्याः पवनाडिनः ॥ वात उद्भ्रम उत्कालि मण्डलि महान् धन गुञ्जा इत्यादि वायुके अनेक भेद हैं । सामान्य वायुको वात, जो घूमती हुई ऊपरको चली जाती है उसको उद्धम, लहरियोंको उत्कलि, जमीनसे लगी हुई किंतु घूमती हुई जो चलती है उसको मंडलि, जो वृक्षादिकको भी उखार डाले ऐसी आंधीको महान्, सघनको घन, पंखे आदिके द्वारा की गई पनली वायुको तनु, उदरमें रहने वाली पांच प्रकारकी प्राण अपान व्यान संव्यानरूपको गुजा कहते हैं। लोकाच्छादक एवं भवन विमानोंकी आधारभूत जो वायु है वह भी इसी में अन्तर्भूत हो जाती है। इन वायुकायिक जीवोंकी भी यतियोंको रक्षा करनी चाहिये । वनस्पतिके भेद गिनाते हैं:मूलाप्रपर्वकन्दोत्थाः स्कन्धबीजसमुद्भवाः । सम्मूर्छिमास्तथानन्तकायाः प्रत्येककायिकाः ।।. स्वरमूलकन्दपत्राणि प्रवालः प्रसवः फलम् । स्कन्धो गुच्छस्तथा गुल्मस्तृणं वल्ली च पर्व च । । शवलं पणक: किण्व कवकः कुहणस्तथा। वादराः सूक्ष्मकायास्तु जलस्थलनभोगताः ।। गूढसन्धिशिरःपर्वसमभङ्गमहीरुकम् । BAMSREEHEENTERERENA NENERANS NSAREERE RASARAKAASHASTEHRELESARHEOREHEETARATE अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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