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________________ अनगार २९५ बध्याय गैरिक चन्देन र वक मोच और मसारंगल | ये सब पृथिवी कायिक जीवोंके भेद हैं जिनकी कि महा अहिंसा व्रत के पालक यतियोंको रक्षा करनी चाहिये । पृथिवीके इन्ही भेदों में आठो पृथिवी मेरु आदि पर्वत द्वीप विमान भवन वेदिका प्रतिमा तोरण स्तूप चैत्यवृक्ष जम्बूवृक्ष शाल्मलिवृक्ष घातकी वृक्ष और रत्नाकर आदि अन्तर्भूत हैं । इसी प्रकार जलकायके भी अनेक भेद हैं; यथा अवश्यायो हिमं चैव मिहिका विन्दुशीकराः । शुद्धं घनोदकं चाम्बुजीवा रक्ष्यास्तथैव ते ।। अवश्याय - ओस, हिम - तुषार, मिहिका - ओद - कुहर, बिन्दु, शीकर- सूक्ष्म बिन्दुकण, शुद्ध-चन्द्रकान्तादिकका अथवा हालका वर्षा हुआ जल, घनोदक- समुद्र तलाव और घनवातादिकसे उत्पन्न हुआ जल, एवं बावडी झरना ओला आदि जलकायिक जीवोंके अनेक भेद हैं। इनकी भी यतियोंको यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये । अग्निकायिक के भेद - ज्वालाङ्गारस्तथाचैिश्च मुर्मुरः शुद्ध एव च । अनलचापि ते तेजोजीवा रक्ष्यास्तथैव च ॥ ज्वाला, अङ्गार, अर्चि-किरण, मुर्मुर -- अन्ने कण्डेकी अग्नि, शुद्ध – वज्र बिजली सूर्यकान्तादिकसे उत्पन्न १- रुधिर मणि, इसका रंग गेरूकासा होता हैं । २- मणिविशेष, इसका वर्ण और गंध चंदनकासा होता है । ३-मरकत मणि- पन्ना । ४–पुखराज । ५ - नीलम । ६- मणिविशेष, जिसका रंग मूंगाकासा होता है । ७--सात नरकभूमि और एक सिद्धशिला । धर्म २९५.
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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