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________________ चनगार २८७ बध्याय 8 लुप इन्द्रियां विशिष्ट भी बुद्धिकी संपत्ति - युक्तायुक्तकी विवेकशक्तिको अपहरण करलेती और अंतमें उसको क रुणा - परिणामसे भी प्रच्युत कर मिथ्यात्वदशाको प्राप्त करा देती हैं। अत एव मुमुक्षुओंको सदा इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त करनेके ही लिये प्रयत्न करना चाहिये । विषयी पुरुषकी दुर्गति दिखाते हैं: -- विषयाभिलाषलाम्पट्यात्तन्वन्नृजु नृशंसताम् । लालामिवोर्णनाभोऽधः पतत्यहह दुर्मतिः ॥ १७ ॥ इष्ट विषयविशेष आभिष- मांसकी लम्पटता लोलुपतासे जो दुर्मति- विषयाभिलाषासे दूषित हो गई है। धिषणा - बुद्धि जिसकी ऐसा पुरुष सामने ही नृशंसताको बढाता है, आद! कितने कष्टकी बात है कि, वह अपनी लाला लारको बढानेवाले ऊर्णनाभ कीडे - मकडीकी तरह अधोगति - नरकादिकमें ही जा पडता है। भावार्थ - जिस प्रकार मकडी प्राणिभक्षण के अभिप्रायसे अपने मुखमे ही लार निकाल कर जाल पूरती है किंतु स्वयं उसमें फंस जाती और लटक रहती है। उसी प्रकार मांसका लोलुपी मनुष्य नृशंसता करने के कारण स्वयं ही अधोगतिको प्राप्त हो जाता है। जो विषयोंसे निस्पृह रहता है उसके इष्टकी सिद्धि होती है ऐसा बताते हैं: यथाकथंचिदेकैव विषयाशापिशाचिका । क्षिप्यते चाप्यालं सिध्यतीष्टमविघ्नतः ॥ १८ ॥ Jaaaaaaaa T धर्मं : २८७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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