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________________ अनगार २७६ अध्याय ४ GRADODRAMA의 원전기 시전해서 전선에 서서 전기가 감지된 RA जिसकी संपत्ति है और अनेक प्रकार के उत्पन्न होनेवाले गुण ही जिसके प्रशस्त पुष्प हैं; ऐसे सम्यक् चारित्ररूपी छायावृक्षका, सम्यक्त्व और ज्ञानका आराधन करनेवाले मुमुक्षुओंको जन्म-जन्ममरण – संसाररूपी मामें चलने के कारण उत्पन्न हुए श्रम - ग्लानिको दूर करनेकेलिये अवश्य ही सेवन करना चाहिये । भावार्थ - " मैं समस्त सावद्ययोगसे विरत हूं " इस तरहके सामायिक भावको ही सम्यक् चारित्र समझना चाहिये। आजकल के ऋषियों वा व्रतियोंकी अपेक्षा से इस विषयमें और जो कुछ कहा गया है वह सब छेदोपस्थापना रूपसे इसीका विस्तार है । यह सम्यक्चारित्र छायावृक्षके समान है । क्योंकि संसारमार्ग संवरण उत्पन्न हुए श्रम और ग्लानिकी निःशेष शांति इसीसे होसकती है। सूर्यके फिर जानेपर भी जिसकी छाया नहीं फिरती ऐसे तरुको छायावृक्ष कहते हैं। जिस प्रकार वृक्षके पल्लवित होनेमें उतम भूमि और जल ये दो प्रधान कारण हैं उसी प्रकार सम्यक्चारित्रके भी समृद्ध होने में सम्यक्त्व और ज्ञानकी आराधनाएं - दर्शनविशुद्धि और श्रुताभ्यास ये दो मुख्य कारण हैं। इसके होनेपर ही चारित्रकी मूल दयासे अनेक अहिंसादि सद्व्रतों का स्कन्ध प्रादुर्भूत हो सकता हैं और उसमेंसे फिर गुप्तिरूपी मुद्दे - बडी बडी शाखाएं निकल सकती हैं, जिनमें से कि सुरक्षित रहनेपर समितिरूपी अनेक छोटी छोटी शाखाएं टहनियां निकलकर उस वृक्षकी संपत्तिको बढाती हैं। और अंत में उस वृक्षपर अनेक गुणरूपी सुंदर फूल फूलते हैं। जो मुमुक्षु उक्त सांसारिक क्लेदको दूर करना चाहते हैं उन्हे चाहिये कि वे इस सुंदर शीतल सघन सुगन्धित तरुकी अवश्य ही सेवा करें । सम्यक्त्व और ज्ञानके पूर्ण हो जानेपर भी जब तक चारित्र पूर्ण नहीं होता तबतक उस जीवको परममुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती । इसी बातको बताते हैं: - १- अत्यंत सघन । २- समीचीन योगनिग्रहका नाम गुप्ति है । ३ - आगममें बताये हुए क्रमके अनुसार की गई प्रवृत्तिको समिति कहते हैं । २७६
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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