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________________ बनगार २६२ द्रव्यानुयोगसमयं समयन्तु महाधियः ॥ १२ ॥ कुशाग्रीय बुद्धिके धारक भव्योंको जीव और अजीक्का तथा बंध और मोक्षका एवं पुण्य · और पापका ज्ञान प्राप्त करनेकेलिये या भले प्रकार निश्चय करनेकेलिये द्रव्यानुयोग समय का--सिद्धांतसूत्र मोक्षशास्त्र या पंचास्तिकाय प्रभृति ग्रंथोंका अच्छी तरह अभ्यास करना चाहिये । भावार्थ-मुमुक्षुओंकी अभिलाषा जिस मार्गसे पूर्ण हो सकती है उसकी सिद्धि तत्वज्ञानपर निर्भर है। और तत्त्वज्ञान, जिनमें जीवादिक तच्चों तथा पदार्थोंका वर्णन किया गया है ऐसे द्रव्यानुयोग शास्त्रोंके अभ्यास पर निर्भर है। अत एव मुमुक्षु एवं तीक्ष्ण बुद्धिके धारक भव्योंको द्रव्यानुयोग शास्त्रोंका अभ्यास अच्छी तरह करना चाहिये। इसके विना मोक्ष क्या है और वह किसकी होती है तथा उसका विरोधी कौन है और उसके विरुद्ध पर्यायके कारण क्या क्या हैं एवं निर्वृतिके कारण क्या क्या हैं यह मालुम नहीं हो सकता। और इसके विना निवृति नहीं हो सकती । इस प्रकार जिसमें चारो अनुयोगोंका संग्रह किया गया है ऐसे जिन भगवान्के उपदिष्ट आगमकी सदा समीचीनतया उपासना करनेवाले भव्योंको जो फल प्राप्त होते हैं उन्हें बताते हैं: सकलपदार्थबोधनहिताहितबोधनभावसंवग, नवसंवेगमोक्षमार्गस्थिति तपसि चात्र भावनान्यदिक् । सप्त गुणाः स्युरेवममलं विपुलं निपुणं निकाचितं सार्वमनुत्तरं वृजिनहजिनवाक्यमुपासितुः सदा ॥ १३ ॥ जिसमें पूर्वापरका विरोध या अन्य किसी प्रकारका दोष महीं पाया जाता। जिसमें लोकालोकके
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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