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________________ बनगार की अपेक्षा इन,गति आदिकोंका जिसमें वर्णन लिखा जाय उस शाहको भी करणानुयोग कहते हैं । यह करणानुयोग मुमुक्षुओंको अवश्य ही हृदयंगत करना चाहिये । चरणानुयोगकी चर्चा करनेकेलिये भी भव्योंको प्रेरित करते हैं। सकलेतरचारित्रजन्मरक्षाविवृद्धिकृत् । विचारणीयश्चरणानुयोगश्चरणादृतैः॥११॥ चारित्रके प्रतिबंधक मोहनीय कर्मका क्षयोपशम होजानेपर चरणानुयोगके द्वारा पूर्ण और अपूर्ण II चारित्रका जन्म रक्षा एवं वृद्धि होती है। अत एव चारित्रका पालन करनेकेलिये जो उद्यत हैं उन भव्योंको अवश्य ही 'इस चरणानुयोगका चित्तमें विचार करना चाहिये । आचारांग उपासकाध्ययन या दूसरे भी चारित्रसम्बन्धी शास्त्रोंका अध्ययन या स्वाध्याय करना चाहिये । भावार्थ:-चरण-चारित्रके जाननेवाले ज्ञानको अथवा उसके प्रतिपादन करनेवाले शास्त्रको चरणानु, योग कहते हैं। हिंसादिक पापोंसे निवृत्तिका नाम चारित्र है। यह दो प्रकारका है-एक पूर्ण दुसरा अपूर्ण अप्रादुर्भूत इन दोनोंकी प्रादुर्भूतिका नाम जन्म, प्रादुर्भूत होनेपर उनमेंसे अतीचारके दूर होनेका नाम रक्षा, और रक्षितोंमें उत्कर्षताके प्राप्त होनेका नाम वृद्धि है। इस प्रकार इन दोनो चारित्रोंके जन्म रक्षा और वृद्धिकी सिद्धि चारित्रमोहनीयका क्षयोपशम होनेपर चरणानुयोगके द्वारा ही होती है । अत एव चारित्रकी इच्छा करनेवाले मुमुक्षु भव्योंको चरणानुयोगका अवश्य ही अभ्यास करना चाहिये। द्रव्यानुयोगकी भावनाकेलिये भव्योंको व्यापृत करते हैं: - जीवाजीवौ बन्धमोक्षौ पुण्यपापे च वेदितुम् । - बध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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