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________________ बनगार है। और उसीके निमित्तसे मनुष्यों वह माहात्म्य प्राप्त होता है कि जिसके द्वारा जीव जगत्पर विजय प्राप्त करलेता है-सर्वज्ञ होकर समस्त जगत्का भोक्ता होजाता है। सम्यक्त्वका ऐसा ही माहात्म्य है कि उससे समस्त सुखोंकी उपलब्धि होसकती है। जैसा कि कहा भी है-- किं पलविएण बहुणा सिद्धा जे णरवरा गए काले । सिझिहहिं जे वि भविया तं जाणह सम्ममाहप्पं । तत्त्वपरीक्षाऽतत्त्वव्यवच्छिदा तत्त्वनिश्चयं जनयेत् । स च दृग्मोहशमादौ तत्त्वरुचिं सा च सर्वसुखम् ।। शुभपरिणामनिरुद्धस्वरसं प्रशमादिकरभिव्यक्तम् । स्यात्सम्यक्त्वमनन्तानुबन्धिमिथ्यात्वमिश्रशमे ॥ बहुत कहनेसे क्या प्रयोजन, भूत कालमें जितने नरपुंगव सिद्ध हुए हैं और भविष्यत्में सिद्ध होंगे वह सब सम्यक्त्वका ही माहात्म्य है। - तत्त्वके परीक्षण-समर्थन और अतत्त्वके निराकरणसे तत्त्वका निश्चय हुआ करता है। किंतु यह निश्चय दर्शनमोहके उपशमादिक होनेपर होता है। तत्त्वका निश्चय होनेपर तत्त्वमें रुचि उत्पन्न होती है और उससे समस्त सुखोंकी सिद्धि होती है। अनन्तानुबंधी कषाय मिथ्याच्च और मिश्र प्रकृतिका उपशम होनेपर सम्यक्त्वकी उद्भूतता होती है जो कि प्रशमादिकोंके द्वारा अभिव्यक्त होता और शुभ परिणामोंके द्वारा अपने रसको निरुद्ध करदेता है। जिसका सम्यग्दर्शन निर्मल गुणोंसे अलंकृत है ऐसा भव्य जीव निरनिशय माहात्म्यके कारण जिस | सर्वोत्कर्षको प्राप्त करलेता है उसकी प्रशंसा करते हैं: -- - बध्याय ARTNERESTHere
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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