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अनगार
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अध्याय
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त्माको मोक्ष - भावमोक्ष कहते हैं। अथवा वेदनीय आयु नाम गोत्ररूप कर्मपुद्गलोंके जीवसे सर्वथा विश्लेष हो जानेको मोक्ष - द्रव्यमोक्ष कहते हैं । आगममें भी मोक्षके विषयमें ऐसा कहा है कि
"आत्यन्तिकः स्वहेतोर्यो विश्लेषो जीवकर्मणोः ।
स मोक्षः फलमेतस्य ज्ञानायाः क्षायिका गुणाः ॥ "
अपने ही कारणसे जो जीव और कर्मका सर्वथा विश्लेष हो उसको मोक्ष कहते हैं। इसका फल आत्माके ज्ञानादिक क्षायिक गुण हैं । तथा- “ बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । " द्रव्यसंग्रहमें भी कहा है कि
" सव्वस्स कम्मणो जो खयहेदू अप्पणो हु परिणामो । यो स भावमोक्खो दव्यविमोक्खो य कम्मपुहभावो ॥”
आत्माके वे परिणाम कि जो समस्त कर्मोके क्षयके कारण हैं भावमोक्ष समझने चाहिये और कर्मोंके पृथक होजानेको द्रव्यमोक्ष कहते हैं ।
तत्वार्थवार्तिक में भी कहा है कि -. ततो मोहक्षयोपेतः पुमानुद्भूत केवलः । 'विशिष्टकरणः साक्षादशरीरत्वहेतुना ॥ रत्नत्रितयरूपेणायोगिकेवलिनोन्तिमे । क्षणे विवर्तते तदबाध्यं निश्चयान्नयात् ॥ व्यवहारनयामित्या त्वेतत्प्रागेव कारणम् । मोक्षस्येति विवादेन पर्याप्तं न्यायदर्शिनः ॥
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