SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार १६८ अध्याय २ त्माको मोक्ष - भावमोक्ष कहते हैं। अथवा वेदनीय आयु नाम गोत्ररूप कर्मपुद्गलोंके जीवसे सर्वथा विश्लेष हो जानेको मोक्ष - द्रव्यमोक्ष कहते हैं । आगममें भी मोक्षके विषयमें ऐसा कहा है कि "आत्यन्तिकः स्वहेतोर्यो विश्लेषो जीवकर्मणोः । स मोक्षः फलमेतस्य ज्ञानायाः क्षायिका गुणाः ॥ " अपने ही कारणसे जो जीव और कर्मका सर्वथा विश्लेष हो उसको मोक्ष कहते हैं। इसका फल आत्माके ज्ञानादिक क्षायिक गुण हैं । तथा- “ बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । " द्रव्यसंग्रहमें भी कहा है कि " सव्वस्स कम्मणो जो खयहेदू अप्पणो हु परिणामो । यो स भावमोक्खो दव्यविमोक्खो य कम्मपुहभावो ॥” आत्माके वे परिणाम कि जो समस्त कर्मोके क्षयके कारण हैं भावमोक्ष समझने चाहिये और कर्मोंके पृथक होजानेको द्रव्यमोक्ष कहते हैं । तत्वार्थवार्तिक में भी कहा है कि -. ततो मोहक्षयोपेतः पुमानुद्भूत केवलः । 'विशिष्टकरणः साक्षादशरीरत्वहेतुना ॥ रत्नत्रितयरूपेणायोगिकेवलिनोन्तिमे । क्षणे विवर्तते तदबाध्यं निश्चयान्नयात् ॥ व्यवहारनयामित्या त्वेतत्प्रागेव कारणम् । मोक्षस्येति विवादेन पर्याप्तं न्यायदर्शिनः ॥ १६८
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy