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________________ मो.मा. ॥ | विर्षे असंयम कह्या, भव्यमार्गणाविषे अभव्य कह्या. तैसे ही सम्यक्त्वमार्गणाविर्ष मिथ्यात्व प्रकाश कह्या है । मिथ्यात्वौं सम्यक्त्वका भेद न जानना । सम्यक्त्व अपेक्षा विचार करते केई जी | वनिकै सम्यक्त्वका अभाव ही मिथ्यात्व पाइए है। ऐसा अर्थ प्रकट करनेके अर्थि सम्य॥ क्त्वमार्गणाविषै मिथ्यात्व कह्या है । ऐसें ही सासादन मिश्र भी सम्बक्त्वके भेद नाहीं हैं। | सम्यक्त्व के भेद तीन ही हैं, ऐसा जानना। यहां कर्मके उपशमादिकतै उपशमादिक सम्य| क्त्व कहे, सो कर्मका उपशमादिक याका किया होता नाहीं। यह तो तत्वश्रद्धान करनेका | उद्यम करै, ताके निमित्तते स्वयमेव कर्मका उपशमादिक हो है। तब याकै तत्वश्रद्धानकी प्राप्ति हो है। ऐसा जानना। याप्रकार सम्यक्स्वके भेद जानने। ऐसें सम्यग्दर्शनका स्वरूप कह्या। बहुरि सम्यग्दर्शनके आठ अंग कहे हैं । निःशांकित्व, निःकांक्षित्व, निर्विचिकित्सित्व, | अमूढदृष्टित्व, उपबृंहण, स्थितिकरण, प्रभावना, वात्सल्य । तहां भयका अभाव अथवा तत्त्व|| निविषै संशयका अभाव, सो निश्शांकित्व है। बहुरि परद्रव्यादिविषै रागरूप बांछाका अभाव, । सो निःकांक्षित्व है । बहुरि परद्रव्यादिविष द्वेषरूप ग्लानिका अभाव सो निर्विचिकित्सित्व है। बहुरि तत्वनिविष देवादिकविर्षे अन्यथा प्रतीतिरूप मोहका अभाव, सो अमूढदृष्टित्व है । बहुरि आत्मधर्म वा जिनधर्मका बधावना, ताका नाम उपबृंहण है । इसही अंगका नाम उपगृहन भी कहिए है । तहां धर्मात्मा जीवनिका दोष ढांकना, ऐसा ताका अर्थ जानना । बहुरि अपने खभावविषै वा जिनधर्मविषै आपकौं वा परकों स्थापन करना, सो स्थितिकरण || * | अंग है । बहुरि अपने खरूपकी का जिनधर्मकी महिमा प्रगट करनी, सो प्रभावना है । बहुरि ।। ५२३ సంవత్సరం నుంచి 100000000000000కు పంపంగ్
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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