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________________ मो.मा. प्रकाश proop0810004030093fo1080010840000480000-00000000000103800100800180380000800103300008) असंयतपर्यंत गुणस्थाननिविष असंयम नाम पावै है । सर्वत्र असंयमकी समानता न जाननी । बहुरि यहां प्रश्न-जो अनंतानुबंधी सम्यक्तवकों न घाते है, तो याकै उदय होते स्म्यक्त्वत। भ्रष्ट होय सासादन गुणस्थानकौं कैसे पावै है । ताको समाधान,| जैसे कोई मनुष्यकै मनुष्यपर्याय नाशकाकारण तीव्ररोग प्रगट भयाहोय, ताकौं मनुष्यपर्या-12 यका छोड़नहारा कहिए । बहुरि मनुष्यपना दूर भए देवादिपर्याय होय, सो तो रोग अवस्था| विषै न भया । वहां तौ मनुष्यहीका आयु है । तैसें सम्यक्तवीकै सम्यक्त्वका नाशका कारण अनंतानुबंधीका उदय प्रगट भया, ताकौं सम्यक्त्वका विरोधक सासादन कह्या । बहुरि सम्यत्वका अभाव भए मिथ्यात्व होप सो तो सासादनविषै न भया। यहां उपशमसम्बकत्वका ही काल है, ऐसा जानना । ऐसें अनंतानुबंधी चतुष्कको सम्यक्त्व होते अवस्था हो हैं। ताते। | सातप्रकृतिनिकै उपशमादिकतें भी सम्यक्त्वकी प्राप्ति कहिए है । बहुरि प्रश्न-सम्यमत्वमार्गणाके छह भेद किए हैं, सो केरौं हैं । ताका समाधान सम्यक्त्वके तो भेद तीन ही हैं । बहुरि सम्यक्तवका अभावरूव मिथ्यात्व है । दोऊनिका मिश्रभाव सो मिश्र है । सम्यक्त्वका घातकभाव सो सासादन है । ऐसें सम्यक्त्व मार्गणाकरि जीवका विचार किए छह भेद कहै हैं । यहां कोई कहै कि, सम्यक्त्वतें भ्रष्ट होय मिथ्यात्वविषे आया होय, ताकौं मिथ्यात्वसम्यक्स्व कहिए । सो यह असत्य है। जाते अभव्यकै भी तिसका सद्भाव पाइए है । बहुरि मिथ्यात्वसम्यक्त्व कहना ही अशुद्र है । जैसे संगममार्गणा-५२२
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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