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________________ प्रकाश ॥ शेष है-जो उपशम क्षायोपशम सम्यक्त्वीकै अनन्तानुबन्धीके विसंयोजनते सत्ता नाश भया । था । बहुरि वह मिथ्यात्वविर्षे आये, तो अनन्तानुबन्धीका बंधको अर तहां वाकी सत्ताका सद्भाव हो है । बहुरि क्षायिकसम्यग्दृष्टी मिथ्यात्वविषै आवै नाहीं । ताते वाकै अनन्तानुबन्धी की सत्ता कदाचित् न होय । यहां प्रश्न--जो अनन्तानुबन्धी तो चारित्रमोहकी प्रकृति है। सो सर्व निमित्त चारित्रहीकों घाते है । याकरि सम्यक्त्व घात फैसे संभधै। ताका समाधान___अनंतानुबंधीके उदयते क्रोधादिकरूप परिणाम हो है । कुछ प्रतत्त्वश्रद्धान होता नाहीं।। 1 तातै अनन्तानुबंधी चारित्रहीकों घाते है। सम्यक्त्वकों नाहीं पाते है । सो परमार्थते है तौ | ऐसे ही परंतु अनंतानुबंधीके उदयतै जैसे क्रोधादिक ही हैं, तैसें क्रोधादिक सम्यक्त्व होते। न होय । ऐसा निमित्त नैमित्तकपना पाइए है । जैसें प्रसपनाकी घातक तो स्थावरप्रकृति ही है । परन्तु सपना होते एकेन्द्रिय जाति प्रकृतिका भी उदय न होय, ताते उपचारकरि । एकेन्द्रिय प्रकृतिकों भी असपनाकी घातक कहिए,तौ दोष नाहीं । तैसें सम्यक्त्वका घातक तो दर्शनमोह है। परंतु सम्यक्त्व होते अनंतानुबंधी कपायनिका भी उदय न होय, तातै उपचा-1 रकरि अनंतानुबंधीकै भी सम्यक्त्वका घातकषना कहिए, तो दोष नाहीं । बहुरि यहां प्रश्न-जो अनंतानुबंधी चारित्रकों घाते है, तो याकै गए किछू चारित्र भया । असंयत गुणस्थानविषै 1 असंयम काहेकौं कहो हो । ताका समाधान-..
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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