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मो.मा.IN कार है । बहरि जाकै मिथ्यात्वको उदय हैं, ताके विरीताभिनिवेश पाइए है । ताकै ए लक्षप्रकाश
ण आभास मात्र होय, सांचे न होय । जिनमत जीवादिकतत्वनिकों माने, औरकों न मान, तिनके नाम भेदादिकौं सीखे हैं, ऐसे तत्वार्थश्रद्धान होय है । परंतु तिनका यथार्थ । भावका श्रद्धान न होय । बहुरि आपापरका भिन्नपनीकी बातें करै, अर वस्त्रादिकवि परबु|द्धिकौं चिंतवन करै परन्तु जैसें पर्यायविर्षे अहंबुद्धि है, पर वस्त्रादिकवि परबुद्धि है, तैसें ।।
आत्माविर्षे अहंबुद्धि शरीरविषै परबुद्धि न हो है । बहुरि आत्माकों जिनवचनानुसार वितवे, परन्तु प्रतीतिरूप आपकौं आप श्रद्धान न करे है । बहुरि अरहंतादिक विना और कुदेवादिककौं न मान है। परन्तु तिनके स्वरूपको यथार्थ पहचानि श्रद्धान न करें है। ऐसे ए। लक्षणाभास मिथ्यादृष्टीके हो हैं । इनवि] कोई होय, कोई न होय । यहां इनकै भिन्नपनी भी। न संभवै है । बहरि इन लक्षणाभासनिविर्षे इतना विशेष है-जो पहिले तो देवादिकका। श्रद्धान होय, पीछे तत्वनिका विचार होय, पीछे आपापरका चितवन करे, पीछे केवल आत्माको चितवै । इस अनुक्रमतें साधन करें, तो परंपराय सांचा मोक्षमार्गकों पाय कोई जीव सिद्धपदकों भी पावै । बहुरि इस अनुक्रमका उल्लंघन करें, वाकै देवादिक माननेका कछु, ठीक नाहीं । अर बुद्धिकी तीव्रतातें तत्त्वातत्वविचारादिविर्षे प्रवर्ते हैं। तातें आपको ज्ञानी। जाने है । अथवा तत्त्वविचारविषे भी उपयोग न लगा है । भर आपापरका भेदविज्ञानी हुवा
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