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________________ मा.मा. प्रकाश 202001000000000000000000 2004 I तातें यां भी सातों तत्त्वनिके ही श्रद्धानका नियम जानना । बहुरि प्रास्त्रवादिकका श्रद्धान बिना आपापरका श्रद्धान' वा केवल आत्माका श्रद्धान सांचा होता नाहीं । जाते आत्मा द्रव्य है, सो तो शुद्ध अशुद्ध पर्याय लिए हैं। जैसे तंतु अवलोकन विना पटका अबलोकन न होय, तैसें शुद्ध अशुद्ध पर्याय पहचाने बिना आत्मद्रव्यका श्रद्धान' न होय । सो शुद्ध अशुद्ध, अवन स्थाकी पहचानि आत्रवादिककी पहचानते हो हैं। बहार आस्रवादिकका श्रद्धान विना आपापरका श्रद्धान वा केवल आत्माका श्रद्धान कार्यकारी भी नाहीं । जाते श्रद्धान करो वा | मति करो, आप है सो आप ही है, पर है सो पर ही है । बहुरि आस्रवादिकका श्रद्धान होय, | तौ आस्रवबंधका अभावकरि संवर निर्जरारूप उपायतें मोक्षपदकों पावै । बहुरि जो आपापरका भी श्रद्धान कराइए है, सो तिस ही प्रयोजनके अर्थि कराइए है । तातें आस्रवादिकका श्रद्धा | नसहित आपापरका जानना का आपका जानना कार्यकारी हैं। यहां प्रश्न जो ऐसे है, तौ ।। |शास्त्रनिविषै आपापरका श्रद्धान वा केवल आस्माका श्रद्धानहीकौं सम्यक्त्व कह्या, वा कार्यकारी || कह्या । बहुरि नव तत्त्वकी संतति छोडि हमारे एक आत्मा ही होहु, ऐसा कह्या । सो. कैसे। कह्या,-ताका समाधान, जाका सांचा आपापरका श्रद्धान वा आत्माका श्रद्धान होय, ताकै सातौँ तत्त्वनिका श्रद्धान होय ही होय । बहुरि जाकै सांचा सात तत्वनिका श्रद्धान होय, ताके आपापरका वा EGF004300000000000000000000000000000000000000000000000000002ckooperaokeGlookickook ఉంచి ఈతం न గజ
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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