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________________ मो.मा. प्रकाश र्शनकी प्राप्ति शास्त्रविर्षे कहीं है । तासे तत्वार्थश्रद्धानपना तुम सम्यक्त्वका लक्षण कह्या, तिसविर्षे अव्याप्तिदृषण लागे हैं। ताका समाधान,- . जीव अजीवादिकका नामादिक जानौ वा मति जानौं, वा अन्यथा जानौ, उनका स्वरूप यथार्थ पहचानि श्रद्धान किए सम्यक्त्व हो है। तहाँ कोई सामान्यपने स्वरूप पहचानि श्रद्धान । करें, कोई विशेषपने स्वरूप पहचानि श्रद्धान करै । तातें तुच्छज्ञानी तिर्यंचादिक सम्यग्दृष्टी हैं, सो जीवादिकका नाम भी न जाने हैं, तथापि उनका सामान्यपने स्वरूप पहचानि श्रद्धान करे || हैं। ताते उनकौं सम्यक्त्वकी प्राप्ति हो है। जैसे कोई तिर्यंच अपना का औरनिका नामादिक तौ नाहीं जाने,परंतु आपहीविषै आपोमाने है।तैसें तुच्छज्ञानी जीव अजीवकानाम न जाने,परंतु ज्ञानादिकखरूप आत्मा है, तिसविषे आपो मान है ।अर जो शरीरादिक हैं,तिनकों पर मान है। ऐसा श्रद्धान वाकै हो है सोही जीव अजीवका श्रद्धानहै। बहुरिजैसैंसोई तिर्यच सुखादिकका नामादिक न जाने है, तथापि सुख अवस्थाको पहचानि ताकेअर्थि आगामी दुःखका कारणको पहि-1 चानि ताका त्यागकों कियाचाहै है । बहुरि जो दुःखकाकारण बनिरह्या हैं,ताके अभावकाउपाय करै है । तातै तुच्छज्ञानी मोक्षादिकका नाम न जाने,तथापि सर्वथा सुखरूप मोक्ष अवस्थाकों श्रद्धान करि ताके अर्थिं आगामी बंधका कारण रागादिक आस्रव ताके त्यागरूप संवरको । किया चाहै है । बहुरि जो संसारदुःखका कारण है, ताकी शुद्धभावकरि निर्जरा किया चाहै ४६१
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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