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________________ मो मा. प्रकाश జరం ఈ విధంగా 1000 होय । या प्रकार यद्यपि तत्वार्थ अनंते हैं, तिनिका सामान्य विशेषकरि अनेक प्रकार प्ररूपण । होय । परंतु यहां मोक्षका प्रयोजन है, तातै दोय तो जातिअपेक्षा सामान्य तत्व अर पांच पर्यायरूप विशेष तत्व मिलाय सात ही तत्व कहे । इनिका यथार्थ श्रद्धानके आधीन मोक्षमार्ग है । इनि विना औरनिका श्रद्धान होहु वा मति होहु, वा अन्यथा श्रद्धान होहु, किसीके आधीन मोक्षमार्ग नाहीं । ऐसा जानना । बहुरि कहीं पुण्य पाप सहित नव पदार्थ कहे हैं। मो पुण्य पाप आस्रवादिकके ही विशेष हैं । तातै साततत्वविषे गर्भित भए । अथवा पुण्यपापका श्रद्धान भए पुण्यकों मोक्षमार्ग न माने, वा स्वच्छंद होय पापरूप न प्रवत्र्ते, तातै मोक्षमार्गविष इनिका श्रद्धान भी उपकारी जानि दोय तत्व विशेष मिलाय नव तल कहे । वा समय सारादिविषै इनकों नव तत्व भी कहे हैं । बहुरि प्रश्न-इनिका श्रद्धान सम्यग्दर्शन कह्या, | सो दर्शन तो सामान्य अवलोकन मात्र अर अद्धान प्रतीति मात्र, इनिकै एकार्थपनो कैसे | संभवै । ताका उत्तर| प्रकरणके वशते धातुका अर्थ अन्यथा होय है । सो यहां प्रकरण मोक्षमार्गका है, तिसविष 'दर्शन' शब्द का अर्थ सामान्य अवलोकन मात्र ग्रहण न करना । जातें चक्षु अचक्षु । दर्शनकरि सामान्य अवलोकन सम्यग्दृष्टि मिथ्यादृष्टिके समान होय है । कुछ याकरि मोक्षमा की प्रवृत्ति होती नाहीं । बहुरि श्रद्धान हो है, सो सम्यग्दृष्टीहीकै हो है । याकरि मोक्षमा- ४८८ D 0 eli 0000000000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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