SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 948
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाश मो.मा.कार्यकारी नाहीं । लाते तत्वकाअर्थका श्रद्धान हो है, सो ही कार्यकारी है । अथवा जीवादि को तत्व संज्ञा भी है, अर्थ संज्ञा भी है ताते 'तत्वमेवार्थस्तत्वार्थः' जो तत्व सो ही अर्थ, तिनका श्रद्धान सो सम्यग्दर्शन है । इस अर्थकरि कहीं तत्वश्रद्धानकों सम्यग्दर्शन कहै, का | कहीं पदार्थश्रद्धानकों सम्यग्दर्शन कहै, तहां विरोध न जानमा । ऐसें 'तत्व' और 'अर्थ' दोय | पद कहनेका प्रयोजन है। यहां प्रश्न-जो तत्वार्थ तौ अनंते हैं । ते सामान्य अपेक्षाकरि जीव अजीवविषै सब गर्भित भए, ताते दोय ही कहने थे । आस्रवादिक तौ जीव अंजीवहीके विशेष हैं इनको जुदा जुदा कहनेका प्रयोजन कहा । ताका समाधान जो यहां पदार्थश्रद्धानका ही प्रयोजन होता, तो सामान्यकरि वा विशेषकर जैसे पदानिका जानना होय, तैसें ही कथन करते । सो तो यहां प्रयोजन है नाहीं। यहां तौ मोक्षका प्रयोजन है । सो जिन सामान्य चा विशेष भावनिका श्रद्धान किए मोक्ष होय, अर जिनका श्रद्धान किए विना मोक्ष न होय, तिनहीका यहां निरूपण किया । सो जीव अजीव ए दोय | तो बहुव द्रव्यनकी एक जाति अपेक्षा सामान्यरूप तस्त्र कहे । सोए दोय जाति जानें बीवके आपापरका श्रद्धान होय । तब परतें भिन्न आपकौं जाने, अपना हितके अर्थि मोक्षका उपाय करे, अर आपतै भिन्न परकौं जाने, तब परद्रव्यतै उदासीन होय रागादिक त्यानि मोक्षमार्ग-1 विषे प्रवर्ते । ता इन दोऊ जातिका श्रद्धान भए ही मोन होय । अर दोऊ जाति जाने రాం రాం రాం రాంనరంతంరం రాంరాం రాంచందరం రాతం ఆ తరాభరణం రాం
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy