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________________ मो.मा - - होय, अर तिनके न भए सर्वथा मोक्ष न होय । ऐसें ए कारण कहे, तिनविर्षे अतिशयकरि || नियमते मोक्षका साधक जो सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रका एकीभाव, सो मोक्षमार्ग जानना। इनि सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चास्त्रिनिविषै एक भी न होय, लो मोक्षमार्ग न होय ।। सोई तत्त्वार्थसूत्रविर्षे कह्या है सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोलमार्गः ॥१॥ इस सूत्रको टीकाविर्षे का है-जो यहां मोक्षमार्गः ऐसा एक वचन कह्या है, || ताका अर्थ यह है-जो तीनों मिले एक मोक्षमार्ग है । जुदे जुदे तीन मार्ग नाहीं है । | यहां प्रश्न-जो असंयत सम्यग्दृष्टिकै तौ चारित्र नाही, वाकै मोक्षमार्ग भया है कि न भया । है । ताका समाधान मोक्षमार्ग वाकै होसी, यह तो नियम भया। तातें उपचारते वाकै मोक्षमार्ग भया भी। कहिए । परमार्थते सम्यक्चारित्र भए ही मोक्षमार्ग हो है । जैसे कोई पुरुषकै किसी नगर चालनेका निश्चय भया। ताते वाकै व्यवहारतें ऐसा भी कहिए जो “यह तिस नगरौं चल्या है। परमार्थते मार्गविषे गमन किएं ही चलना होसी । तैसे असंयत सम्यम्दृष्टीके वीतरागभावरूप मोक्षमार्गका श्रद्धान भया, ताते वार्को उपचारतें मोक्षमार्गी कहिए, परमार्थहैं बीतरागभावरूप परिणमै ही मोक्षमार्ग होसी । बहुरि प्रवचनसारविष भी तीनोंकी एका- ४८२ సుందంగా ఉందని నిరంతరంగంగంగంగం 00010
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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