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________________ मा. प्रकाश - -200458600cmoms.croscgoogleoopcroMEGYOOO%800x2000pSORRECOMMooccoomcoorcom नीची क्रिया वा अशुभदिया तिनकी अपेक्षा जाननी । ऐसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि ऐसे ही काहू जीवकी उंचे जीवकी अपेक्षा निंदा करी होय, तहां सर्वथा निंदा न जाननी । काहूकी ।। नीचे जीवकी अपेक्षा प्रशंसा करी होय, तो सर्वथा प्रशंसा न जाननी । यथासंभव वाका गुण दोष जानि लैना । ऐसे ही अन्य व्याख्यान जिस अपेक्षा लिएं किया होय, तिस अपेक्षा । वाका अर्थ समझना । बहुरि एक ही शब्दका कहीं तो कोई अर्थ हो है, कहीं कोई अर्थ हो है, तहां प्रकरण पहिचानि पाका संभवता अर्थ जानना । जैसे मोक्षमार्गविष सम्यग्दर्शन कह्या । तहां दर्शन शब्दका अर्थ श्रद्धान है, अर उपयोगवर्णनविषै दर्शन शब्द का अर्थ सामान्य ग्रहण मात्र है, अर इन्द्रियवर्णनविष दर्शन शब्द का अर्थ नेत्रकरि देखने मात्र है। बहुरि । जैसे सूक्ष्मवादरका अर्थ वस्तुनिका प्रमाणादिक कथनविर्षे छोटा प्रमाण लिएं होय, ताका नाम सूक्ष्म अर बड़ा प्रमाण लिएं होय, ताका नाम वादर, ऐसा अर्थ होय । अर पुद्गलस्कधादिका कथनविणे इंद्रियगम्य न होय, सो सूक्ष्म, इंद्रियगम्य होय सो वादर, ऐसा अर्थ है।। जीवादिकका कथनविषे ऋद्धि आदिका निमित्तविना स्वयमेव रुकै नाही, ताका नाम सूक्ष्म, रुकै।। ताका नाम वादर, ऐसा अर्थ है । वस्त्रादिक कथनविषे महीनताका नाम सूक्ष्म, मोटाका नाम बादर, ऐसा अर्थ है । करणानुयोगके कथनविर्षे पुद्गलस्कंधके निमित्तते रुकै नाही, नाही, ताकनाम सूक्ष्म है अर रुक जाय ताका नाम वावर है । बहुरि प्रत्यक्ष शब्दका अर्थ लोक- ४५३ HONORGOOEM+okamsformsteoaco04930008600-008001806ookDef000000000000MMMONICTIO010084001806000 ।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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