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मो.मा. अपेक्षा भयादिकका उदय अष्टमादि गुणस्थान पर्यंत पाईए हैं। तातकरणानुयोगविर्षे तहां प्रकाश पर्यंत तिनका सद्भाव कह्याः। ऐसे ही अन्यत्र जानना । पूर्व अनुयोगनिका उपदेशविधानविषे ।
कई उदाहरण कहे हैं, ते जानने, अथवा अपनी बुद्धिते समझि लेना । बहुरि एक ही अनुयोगविर्षे विविनाके वशते अनेकरूप कथन करिए है । जैसें करणानुयोगविषे प्रमादनिका सप्तम | गुणस्थानविषै प्रभाव कह्या, तहां कषाय प्रमादके भेद कहे । बहुरि तहां ही कषायादिकका । सद्भाव दशमदि गुणस्थान पर्यंत कह्या, तहां विरुद्ध न जानना । जातें यहां प्रमादनिविषे तो। जे शुभ अशुभ भावनिका अभिप्राय लिएं कषायादिक होय, तिनका ग्रहण है । सो सप्तम | गुणस्थानविय ऐसा अभिप्राय दूरि भया, तातै तिनका तहां अभाव कह्या । बहुरि सूक्ष्मादि
भावनिकी अपेक्षा तिनहीका दशमादि गुणस्थान पर्यंत सद्भाव कह्या है । बहुरि चरणानुयोग| विषै चोरी परस्त्री आदि सप्तव्यसनका त्याग प्रथम प्रतिमावि कह्या, बहुरि तहां ही तिनका।। । त्याग द्वितीय प्रतिमाविषे कह्या । तहां विरुद्ध न जानना । जाते सप्तव्यसनविषै तो चोरी
आदि कार्य ऐसें ग्रहे हैं, जिनकरि दंडादिक पावे, लोकविर्षे अतिनिंदा होय । बहुरि प्रतनिविर्षे । |चोरी आदि त्याग करनेयोग्य ऐसे कहे हैं, जे गृहस्थधर्मविर्षे विरुद्ध होय, वा किंचित् लोकनिय | होय । ऐसा अर्थ जानना । ऐसें ही अन्यत्र जानना । बहुरि नाना भावनिकी सापेक्षते एक है। ही भावकों अन्य अन्य प्रकार निरूपण कीजिए है। जैसे कहीं तौ महात्रतादिक चारित्रके। १५१