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________________ मो.मा. है। जीवादि तत्वनिका विशेष युक्ति दृष्टांतादिकरि निरूपण कीजिए है। तहां खपरभेदविज्ञानाप्रकाश दिक जैसे होय, तैसें जीव अजीवका निर्णय कीजिए है । बहुरि वीतरागभाव जैसे होय, तैसें श्रास्रवादिकका स्वरूप दिखाईए है । बहुरि तहां मुख्यपर्ने ज्ञान वैराग्यकों कारण आत्मानुभवनादिक ताकी महिमा गाईए है। वहुरि द्रव्यानुयोगविषै निश्चय अध्यात्म उपदेशकी | प्रधानता होय, तहां व्यवहारधर्मका भी निषेध कीजिए है । जे जीव आत्मानुभवनके उपायको न करे हैं, अर वाह्य क्रियाकांडविषे मग्न हैं, तिनकों तहांते उदासकरि आत्मानुभवनादिविषै लगावनेकौं व्रत शील संयमादिकका हीनपना प्रगट कीजिए है । तहां ऐसा न जानि लेना, जो इनकों छोड़ि पापविषे लगना । जाते तिस उपदेशका प्रयोजन अशुभविषै लगावनेका नाहीं है । शुद्धोपयोगविष लगावनेकों शुभोपयोगका निषेध कीजिए है । यहां कोऊ कहै कि-अध्यात्मशास्त्रनिविषै पुण्य पाप समान कहे हैं, तातें शुद्धोपयोग होय तौ भला ही है, न होय तो पुण्यविषै लगो वा पापविषे लगो। ताका उत्तर। जैसे शूद्रजातिअपेक्षा जाट चांडाल समान कहे, परंतु चांडालते जाट किछु उत्तम है। यह अस्पृश्य है, वह स्पृश्य है । तैसें बंधकारण अपेक्षा पुण्य पाप समान हैं, परंतु पापते । पुण्य किछु भला है। वह तीनकषायरूप है, यह मंदकषायरूप है। तातै पुण्य छोड़ि पापविषे लगना युक्त नाहीं, ऐसा जानना । बहुरि जे जीव जिनविम्बभक्त्यादि कार्यनिविणे ही || ४३४ ఆంధ్ర-gov-00 అని నిరంతరం పై రాం రాంంంంంందుకు ఆనంట్లో అందం
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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