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________________ मो.मा. प्रकाश r goolerodereolz6/06COMEN अभाव कह्या, सो मुनिकै मनके विकल्प हो हैं, परंतु स्वेच्छचारी मनका पापरूप प्रवृत्तिका अभावतें मनअविरतिका अभाव कह्या, ऐसा जानना । बहुरि चरणानुयोगविणे व्यवहार लोकप्रवृत्ति अपेक्षा ही नामादिक कहिए है । जैसें सम्यक्तीको पात्र कह्या, मिथ्यातीको। | अपात्र कह्या । सो यहां जाकै जिनदेवादिकका श्रद्धान पाईए, सो तौ सम्यक्ती, जाकै तिनका । श्रद्धान नाहीं, सो मिथ्याती जानना । जातै दान देना चरणानुयोगविषे कह्या है, सो चरणानुयोगहीको अपेक्षा सम्यक्त मिथ्यात्व ग्रहण करिए है । करणानुयोग अपेक्षा सम्यक्त मिथ्यात्व ग्रहें वो ही जीव ग्यारवें गुणस्थान अर वो ही अंतर्मुहूर्त में पहिले गुणस्थान आवै, तहां दातार पात्र अपात्रका कैसे निर्णय करि सके । बहुरि द्रध्यानुयोग अपेक्षा सम्यक्त मिथ्यात्व । ग्रहें मुनि संघविर्षे द्रव्यलिंगी भी हैं, भावलिंगी भी हैं । सो प्रथम तो तिनका ठीक होना | कठिन है । जाते बाह्यप्रवृत्ति समान है । अर जो कदाचित् सम्यक्तीकों कोई चिहकरि ठीक पड़े अर वह वाकी भक्ति न करे, तब औरनिकै संशय होय, जो याकी भक्ति क्यों न करी । ऐसे वाका मिथ्यादृष्टीपना प्रगट होय, तब संघविर्षे विरोष उपजै । तातै यहां व्यवहार सम्यक्त मिथ्यात्वकी अपेक्षा कथन जाननें । यहां कोई प्रश्न करे--सम्यक्ती तो द्रव्यलिंगीकौं आप हीनगुणयुक्त माने है, ताकी भक्ति कैसे करे । ताका समाधान- व्यवहारधर्मका साधन द्रव्यलिंगीले बहुत है भर भक्ति करनी सो भी व्यवहार ही है । ASSPOROOMSRTOOTGion-3600-3rocorticooterozcoopero 3800-90000000pcoodaco-0000000003COOTOSooracookcc00-80003600%a6000000002800
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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