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मो.मा. प्रकाश
का प्रयोजन है । जैसे अणुव्रतीकै त्रसहिंसाका त्याग कह्या, अर वाकै स्त्रीसेवनादि कार्यविर्षे असहिंसा हो है। यह भी जाने है-जिनवानी विषे यहां त्रस कहे हैं। परंतु याकै त्रस मारनेका । अभिप्राय नाही, अर लोकवि जाका नाम त्रसघात है, ताकों करै नाहीं । तातै तिस अपेक्षा । | वाकै त्रसहिंसा का त्याग है। बहुरि मुनिकै स्थावरहिंसाका भी त्याग कह्या, सो मुनि पृथ्वी जलादिविषै गमनादि करै हैं, तहां सर्वथा त्रसका भी अभाव नाहीं। जाते त्रसजीवकी भी । अवगाहना ऐसी छोटी हो है, जो दृष्टिगोचर न होवे । अर तिनकी स्थिति पृथ्वी जलादि विषै। ही है, सो मुनि जिनवानीत जाने हैं, वा कदाचित् अवधिज्ञानादिकार भी जाने हैं। परंतु याकै प्रमादतै स्थावर त्रसहिंसाका अभिप्राय नाहीं । बहुरि लोकविषै भूमि खोदना अप्रासुक जलते क्रिया करनी इत्यादि प्रवृत्तिका नाम स्थावरहिंसा है, अर स्थूल त्रसनिके पीड़नेका। नाम त्रसहिंसा है, ताकी न करै । तातें मुनिकै सर्वथा हिंसाका त्याग कहिए है । बहुरि ऐसे। ही अनृत स्तेय अब्रह्म परिग्रहका त्याग कह्या । अर केवलज्ञानका जाननेकी अपेक्षा असत्यवचनयोग वारवां गुणस्थान पर्यंत कह्या । अदत्त कर्मपरमाणु आदि परद्रव्यका ग्रहण तेरवां | गुणस्थान पर्यंत है। वेदका उदय नवमगुणस्थानपर्यंत है । अंतरंगपरिग्रह दशमगुणस्थानपर्यंत है। वाह्यपरिग्रह समवसरणादि केवलीके भी हो है। परंतु प्रमादतै पापरूप अभिप्राय नाही, अर लोकप्रवृत्तिविर्षे तिन क्रियानिकरि यह झूठ बोले है, चोरी करै है, कुशील सेवे है, परिग्रह
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