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________________ मो.मा. प्रकाश konsootroopercossrooooooooooooooooooKEKOREONESo0%foom8088oopareena ताको मिथ्यावादी न कहिए । ऐसें जानना-जो जैसाका तैसा लिखनेकी संप्रदाय होय, तो । काहूनै गहुत प्रकार वैराग्य चिंसवन किया था, ताका वर्णन सब लिखे ग्रंथ बधि जाय, भर | | किछु न लिखे, तो भाव भासे नाहीं । तातै वैराग्यकै ठिकानें थोरा बहुत अपना विचारकै । अनुसार वेराग्य पोषता ही कथन करै सराग पोषता न करै । तहां प्रयोजन अन्यथा न भया, | ताते याकों अयथार्थ न कहिए । ऐसें ही अन्यत्र जानना । बहुरि प्रथमानुयोगविषे जाकी | मुख्यता' होय, ताकों ही पोषे हैं। जैसे काहने उपवास किया, ताका तो फल स्तोक था बहुरि । बाके अयधर्म परिणतिकी विशेषता भई, तातें विशेष उच्चपदकी प्राति भई । तहां तिसकों | उपवासको फल निरूपण करें । ऐसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि जैसे काहनें शीलहीकी प्रतिज्ञा दृढ़ राखी, वा नमस्कार मंत्र स्मरण किया, वा अन्यधर्म साधन किया, ताकै कष्ट दूरि भए अतिशय प्रगट भए, तहां तिनहीका तैसा फल न भया अर अन्य कोई कर्म | | उदयतै वैसे कार्य भए तो भी तिनको तिन शीलादिकका ही फल निरूपण करै । ऐसें ही।। | कोई पारकार्य किया, ताके तिसहीका तो तैसा फल न भया भर अन्य कर्म उदयतें नीचगति को प्राप्त भया, वा कष्टादिक भए, ताको तिस ही पापका फल निरूपण करे । इत्यादि। ऐसे ही जानना । यहां कोऊ कहै-ऐसा झूठा फल दिखावना तो योग्य नाहीं । ऐसे कथनको प्रमाण कैसे कीजिए । ताका समाधान ४१
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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