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________________ मो.मा. विषे लागे हैं। बहरि ऐसे विचारविषे उपयोग समि जाय, तव पापप्रवृत्ति छटि खयमेव तत्काप्रकाशल धर्म उपजे है । तिस अभ्यासकरि तत्वज्ञानकी प्राप्ति हो है । बहुरि ऐसा सूक्ष्म यथार्थ क थन जिनमतविधै ही है, अन्यत्र नाहीं, ऐसे महिमा जानि जिनमतका श्रद्धानी हो है। बहुरि । जे जीव तत्वज्ञानी होय इस करणानुयोगको अभ्यासे हैं, तिनकों यह तिसका विशेषणरूप भासै है । जो जीवादिक तत्व आप जानै है, तिनहीके विशेष करणानुयोगविषै किए हैं। तहां। | केई विशेषण तो यथावत् निश्चयरूप हैं, केई उपचार लिए ब्यवहाररूप हैं। केई द्रब्य क्षेत्र | काल भावादिकका खरूप प्रमाणादिरूप हैं, केई निमित्त आश्रयादि अपेक्षा लिए हैं । इत्यादि अनेक प्रकारके विशेषण निरूपण किए हैं, तिनकों जैसाका तैसा मानता, तिस करणानुयोग कौं अभ्यासे है । इस अभ्यासतें तत्वज्ञान निर्मल हो है । जैसे कोऊ यह तो जानै था, यह | रत्न है। परंतु उस रत्नके विशेष घने जाने निर्मल रत्नका पारखी होय, तैसें तत्वनिकों जाने | था, ए जीवादिक हे, परंतु तिन तत्वनिके घने विशेष जाने, तौ निर्मल तत्वज्ञान होय । तत्व| ज्ञान निर्मल भए आप ही विशेष धर्मात्मा हो है । बहुरि अन्य ठिकाने उपयोगकौं लगाईए, | तो रागादिककी वृद्धि होय, छद्मस्थका एकाग्र निरन्तर उपयोग रहै नाहीं। तातें ज्ञानी इस करणानुयोगका अभ्यासविषै उपयोगको लगावें हैं। तिसकरि केवलज्ञानकरि देखे पदार्थनि का जानपना याके हो है । प्रत्यक्ष अप्रत्यक्षहीका भेद है । भासनेविषे विरुद्ध है नाहीं। ऐसें ||४१० मा--000-%ES00000088loopwapkoot000-Setoooooodacroachelore/0Cooooper goooooooooooooooooozMOofaetootacom100500018600200-000000000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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