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मो.मा.
प्रकाश
दुखी सुखी नाही, आत्मा अशद्ध अवस्थाविषे दुखी था, अब ताके अभाव होनेते निराकुललक्षण अनंतसुखकी प्राप्ति भई । बहुरि इन्द्रादिकनिकै जो सुख है, सो कषाय भावनिकरि ।
आकुलतारूप है । सो वह परमार्थ से दुखी ही है । ताते वाको याकी एक जाति नाहीं । बहुरि स्वर्गसुखका कारण प्रशस्तराग है, मोक्षसुखका कारण वीतरागभाव है, तातै कारणविषै भी। विशेष है । सो ऐसा भाव याौं भारी नाहीं। तातें मोक्षका भी याकै सांचा श्रद्धान नाही! है। या प्रकार याकै सांचा तत्वश्रद्धान नाहीं है । पाहं तें समयसारविषै कह्या है-"अभव्यकै तत्त्वश्रद्धान भए भी मिथ्यादर्शन ही रहै है।” वा प्रवचनसारविर्षे कह्या है "आत्मज्ञानशून्य तत्वार्थश्रधान कार्यकारी नाहीं ।” बहुरि यह व्यवहारदृष्टिकरि सम्यग्दर्शनके आठ अंग कहे | हैं, तिनकों पाले है । पचीस दोष कहे हैं, तिनको टाले है । संवेगादिक गुण कहे हैं, तिनकों। धारै है । परन्तु जैसे बीज बोए विना खेतकी सावधानी किए भी अन्न होता नाही, तेरौं सांचा तत्वश्रधान भए विना सम्यक्त होता नाहीं। सो पंचास्तिकायव्याख्याविषै जहां अन्तविषे व्यवहाराभासवालेका वर्णन किया, तहां ऐसा ही कथन किया है। या प्रकार याकै सन्यग्दर्शनके अर्थि साधन करते भी सम्यग्दर्शन न हो है। ___ अब यह सम्यग्ज्ञानके अर्थि शास्त्रविषे शास्त्रभ्यास किए सम्यग्ज्ञान होना कया है, ताते ।। जे शास्त्राभ्यासविषै तत्पर रहे हैं, तहां सीखना सिखावना यादि करना वांचना पढ़ना आदि