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मो.मा.
प्रकाश
వరం 20 X 100000000
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तौ संसारहीमें भ्रमै । बहुत कहा, इतना समझि लेना-निश्चय धर्म तौ वीतरागभाव है । अन्य | नाना विशेष बाह्यसाधन अपेक्षा उपचार किए हैं, तिनको व्यवहारमात्र धर्म संज्ञा जाननी।। इस रहस्यकौं न जाने, तातें वाकै निर्जराका भी सांचा श्रद्धान नाहों है।
बहुरि सिद्ध होना ताकौं मोक्ष.मान है। बहुरि जन्म जरा मरण रोग क्लेशादि दुखदूरि । भए अनन्तज्ञानकरि लोकालोकका जानना भया, त्रिलोकपूज्यपना भया, इत्यादि रूपकरि । ताकी महिमा जाने है । सो सर्व जीवनिकै दुख दूर करनेकी वा ज्ञेय जाननेकी वा पूज्य होने की चाहि है । इनहीकै अर्थ मोक्षकी चाहि कीनी, तौ याकै और जीवनिका श्रधानतें कहा विशेषता भई । बहुरि याकै ऐसा भी अभिप्राय है-स्वर्गविषै सुख है, तातें अनंतगुणा मोक्षविष सुख है । सो इस गुणकारविषै स्वर्ग मोक्ष सुखकी एक जाति जाने है। तहां वर्गविषै।
तौ विषयादि सामग्रीजनित सुख हो है, ताकी जाति याकौं भास है अर मोक्ष विषै विषयादि | | सामग्री है नाहीं, सो वहांका सुखकी जाति याकौं भासै तौ नाही, परंतु वर्ग तैं भी उत्तम मोक्ष कौं महापुरुष कहै हैं, तातें यह भी उत्तम ही माने है। जैसे कोऊ गानका स्वरूप न पहिचाने, परंतु सर्व सभाके सराहें, तातें आप भी सराहे है। तैसें यह मोक्ष को उत्तम माने । है। यहां वह कहै है-शास्त्रविषै भी तो इंद्रादिकतै अनन्तगुणा सुख सिद्धनिकै प्ररूप हैं। ताका उत्तर
1000000
హించినా నిరంకుశ
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