________________
मो.मा.
D
पहचानि तिनकी सेवाते अपना भला होना जानि तिनविर्ष अनुरागी होय भक्ति करे है । ऐसा ।। गुरुभक्तिका स्वरूप कह्या । अब शास्त्रभक्तिका खरूप कहिए है
केई जीव तो यह केवली भगवानको वानी है, तातै केवलीके पूज्यपनाते यह भी पूज्य है, ऐसा जानि भक्ति करै हैं । बहुरि केई ऐसें परीक्षा करें हैं-इन शास्त्रनिवि विरागता दया क्षमा शील संतोषादिकका निरूपण है, तातै उत्कृष्ट हैं, ऐसा जानि भक्ति करें हैं। सो ऐसा कथन तो अन्य शास्त्र वेदान्तादिक तिनविष भी पाईए है। बहुरि इन शास्त्रनिविषै त्रिलोकादिकका गंभीर निरूपण है । तातै उत्कृष्टता जानि भक्ति करे हैं । सो यहां अनुमाना| दिकका तो प्रवेश नाहीं। यहां अनेकांतरूप सांचा जीवादितत्त्वनिका निरूपण है । अर सांचा रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग दिखाया है । ताकरि जैनशास्त्रनिको उत्कृष्टता है। ताकों नाहीं पहिचान है। आते यह पहचानि भए मिथ्या ष्टि रहे नाहीं । ऐसे शास्त्रभक्ति का स्वरूप कह्या। ___ या प्रकार याकै देव गुरु शास्त्रकी प्रतीति भई, तातै व्यवहारसम्यक्त्व भया माने है । परन्तु उनका सांचाखरूप भास्या नाहीं । तातै प्रतीति भी सांची भई नाहों । सांची प्रतीतिविना सम्यक्तकी प्राप्ति नाहीं। तातै मिथ्यादृष्टी रहै है। बहुरि शास्त्रविषै “तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्” ऐसा वचन कह्या है । तातें जैसे शास्त्रनिविष जीवादि तत्त्व लिखे हैं, तैसे आप सीखि ने है। तहां हो उपयोग लगावे है । औरनिकों उपदेश दे है, परन्तु तिनका भाव
సంతసంప్రందం నిరంతరం నిరంతరం
-