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मोमाः | तो पापहीका अभिप्राय रह्या । कांक्षारूप भाव भए तिनकरि पूर्वपापका संक्रमणादि कैसे होय।।। प्रकाश
बहुरि तिनका कार्यसिद्ध न भया । बहुरि केई जीव भक्तिकों मुक्तिका कारण जानि तहां अति अनुरागी होय प्रवत्तें हैं । सो अन्यमती जैसें भक्तिते मुक्ति माने हैं, तैसे याकै भी श्रद्धान || | भया । सो भक्ति तौ रागरूप है । राग बंध है । तातें मोक्षका कारण नाहीं। जब रागका | उदय आवे, तब भक्ति न करे, तो पापानुराग होय । ताते अशुभ राग छोड़नेकौं ज्ञानी भक्ति विषै प्रवर्ते हैं । वा मोक्षमार्गकों बाह्य निमित्तमात्र भी जाने हैं। परन्तु यहां ही उपादेयपना मानि सन्तुष्ट न हो हैं। शुद्धोपयोगका उद्यमी रहे हैं। सोही पंचास्तिकायव्याख्याविर्षे कह्या है
इयं भक्तिः केवलभक्तिप्रधानस्याज्ञानिनो भवति ।
तीव्ररागद्वेषविनोदार्थमस्थानरागनिषेधार्थ क्वचित् ज्ञानिनोपि भवति ॥ याका अर्थ यह भक्ति केवलभक्ति ही है प्रधात जाकै ऐसा अज्ञानीजीवकै हो है। बहरि तीव्र रागज्वर मेटनेके अर्थ वा कुठिकानें रागनिषेधनेके अर्थि कदाचित् ज्ञानीक भी हो है। तहां वह पूछ है-ऐसें है, तो ज्ञानीत अज्ञानीके भक्तिकी विशेषता होती होगी। ताका || उत्तर
यथार्थपनेकी अपेक्षा तो ज्ञानीकै सांची भक्ति है-अज्ञानीके नाहीं है । अर रागभावकी
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