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________________ मो.मा.||| अर्थि धर्म साधे हैं । उपकार करावनेका अभिप्राय नाहीं है । आपकै जाका त्याग नाहीं, ऐसा प्रकाश || उपकार करावें। कोई साधर्मी खयमेव उपकार करे, तो करौ अर न करै तो आपकै किछु || संकल्लेश होता नाहीं । सो ऐसें तो योग्य है। अर आप ही आजीविका आदिका प्रयोजन । विचारि बाह्य धर्मका साधन करे, तहां भोजनादिक उपकार कोई न करे, तहां संक्लेश करे, | याचना करे, उपाय करे, वा धर्मसाधनविर्षे शिथिल होय जाय, सो पापी ही जानना। ऐसे | संसारीक प्रयोजन लिए धर्म साधै हे, ते पापी भी हैं अर मिथ्यादृष्टी हैं ही। याप्रकार जिन|| मतवाले भी मिथ्यादृष्टि जानने । अब इनके धर्मका साधन कैसे पाइये है, सो विशेष दिखा । -BKOrgiarriorracoirvardenia0000+30amaar-kala pGIRameborou rease-on +Mao+0196/000000000000128GokaookGookaa00-8000000000000106003016/001061001300-00180G00180106fol ॥ तहां जीव कुलप्रवृत्तिकरि वा देख्यां देखी लोभादिकका अभिप्रायकरि धर्म साधे हैं, ति निकै तो धर्मदृष्टि नाहीं । जो भक्ति करे है तो चित्त तो कहीं है, दृष्टि फिरया करै है। अर । मुखते पाठादि करै है वा नमस्कारादि करे है । परन्तु यह ठीक नाही में कौन हौं, किसकी । स्तुति करूँ हूँ, किस प्रयोजनके अर्थि स्तुति करौं हों; पाठवि कहा अर्थ है, सो किछू ठीक नाही बहुरि कदाचित् कुदेवादिककी भी सेवा करने लगि जाय । तहां सुदेव गुरुशास्त्रादिविर्षे | । विशेष पहिचाने नाहीं। बहुरि जो दान दे है, तो पात्र अपात्रका विचाररहित जैसे अपनी प्रशंसा होय, तेसैं दान दे है । बहुरि तप करे हैं, तो भूखा रहनेकरि महंतपनो होय सो कार्य ३३४
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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