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________________ वारणतरण र वहां मलको देखा और मूर्खतापर पछतावा किया। इसी दृष्टांतसे जगतमें कुदेव या अदेव पूजा चल पड़ी है। देखादेखी लोग अदेवका देव मान लेते हैं और पूजते हैं। इस अंधभक्तिसे घोर पापकर्म बांधते हैं जिससे नरकमें या तिर्यचगतिमें जाकर स्वयं नारकी होजाते हैं या पीपल, नीम, करोंदा, आमके वृक्ष होजाते हैं। जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक पृथ्वीकायिक जीव होजाते हैं। फिर पतंगादि व भेड़, बकरी आदि होकर घोर दुःखको भोग सहन करते हैं । अतएव अदेवोंकी भक्ति नहीं करनी चाहिये। श्लोक-अनंतकाल भ्रमनं च, अदेवं देव उच्यते ।। अनृतं अचेत दिष्टंते, दुर्गतिगमनसंजुतं ॥ ६२॥ अन्वयार्थ-जो ( अदेवं ) अदेवोंको (देव) देव (उच्यते) कहते हैं उनका (अनंतकाल) अनंतकाल तक (भ्रमनं ) संसारमें भ्रमण होगा। यह अदेव ( अनृतं ) मिथ्यारूप माने हुए देव हैं (अचेत ) सम्यरज्ञानसे रहित जड़ हैं (दिष्टंते) ऐसे दिखलाई पड़ते हैं (दुर्गतिगमनसंयुतं) इनकी भक्ति खोटी गतिमें गमनका कारण है। विशेषाथ-जो मिथ्या उपदेशके देनेवाले ऐसा उपदेश करते हैं कि गौ, हाथी, घोड़ा, आदि पशुको देव मानके पूजो, या पीपल, वर्गत, तुलसी आदि वृक्षोंको देव मानके पूजो, या चाकू, मूसल, चूल्हा, देहली, तलवार, कलम, दावात, बही, आदि, व कंकड़ पत्थर आदिको देव मानकर पूजो वे मिथ्यात्वमें फंसानेवाले अनंत संसारके कारण हैं। जिनके देखनेसे व जिनके गुणोंसे वीतराग भाव नहीं झलकता है वे सब आकृतियें अदेवों में गर्भित हैं। जो सच्चे देवकी ओर जानेसे रोकनेवाले हैं वे अदेव हैं, उनकी भक्तिका जो उपदेश देते हैं वे मिथ्यात्वके प्रचार करनेसे अनंतकाल तक संसारमें भ्रमण करेंगे । इनमें किसी भी तरह देवपना नहीं है। इनको देव मानना मिथ्या है। इन माने हुए देवों में अर्थात् पशु आदि पीपलादिमें तो सम्यग्ज्ञान नहीं है, यद्यपि अपने योग्य मति श्रुतज्ञान है। तथा कलम, दावात, तलवार, कागज आदिमें ज्ञानकी शून्यता ही है, वे जड़ हैं। इनकी भक्ति मात्र अंध भकि है निरर्थक है, तथा पापबंध कराकर दुर्गतिमें ले जानेवाली है।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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