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________________ भो.मा. प्रकाश | या है मुख जिन. ऐसे रागी वैराग्यक्तिरहित भी आचरण करे हैं, तो करौ, बहुरि पंचसमि| तिकी सावधानीकों अवलंबे हैं, तो अवलंबी, ज्ञानशक्ति बिना अजहू पापी ही हैं। ए दोऊ | आल्मा अनात्माका ज्ञानरहितपनाते सम्यक्वरहित ही हैं। - बहुरि पूछिए है-परकों पर जान्या, तो परद्रव्य विर्षे रागादि करनेका कहा प्रयोजन रह्या । तहां वह कहै है-मोहके उदयते रागादि हो हैं । पूर्व भरतादि ज्ञानी भए, तिनकै भी | विषयकषायरूप कार्य भया सुनिए है । ताका उत्तर__ज्ञानीके भी मोहके उदयते रागादिक हो हैं यह सत्य, परंतु बुद्धिपूर्वक रागादिक होते नाहीं । सो विशेष वर्णन आगे करेंगे । बहुरि जाकै रागादि होनेका किछु विषाद नाहीं, तिनके । नाशका उपाय नाही, ताकै रागादिक बुरे हैं ऐसा श्रद्धान भी नाहीं संभव है । ऐसे श्रद्धानबिना सम्यग्दृष्टी कैसे होय । जीवाजीवादि तत्त्वनिके श्रद्धान करनेका प्रयोजन तो इतना ही | । श्रद्धान है । बहुरि भरतादि सम्यग्दृष्टीनिकै विषय कषायनिकी प्रवृत्ति जैसे हो है, सो भी । विशेष आगें कहेंगे । तू उनका उदाहरणकरि खच्छन्द होगा, तो तेर तीव्र पास्त्रव बंध होगा। सो ही कह्या है मग्नाः ज्ञाननयैषिणोपि यदि ते खछन्दमन्दोद्यमाः । याका अर्थ यह ज्ञाननयके अवलोकनहारे भी जे स्वछन्द मन्दउद्यमी हो हैं, ते संसार ३१५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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