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________________ मो.मा. प्रकाश याका अर्थ- -समस्त ही कर्त्ता कर्म आदि कारकनिका समूहकी प्रक्रिया पारंगत ऐसी | जो निर्मल अनुभूति जो अभेदज्ञान तन्मात्र है, तातें शुद्ध है । तातें ऐसें शुद्ध शब्दका अर्थ जानना । बहुरि ऐसें ही केवलशब्दका अर्थ जानना । जो परभावतें भिन्न निःकेवलपही ताका नाम केवल है । ऐसें ही अन्य यथाथ अर्थ अवधारना । पर्यायअपेक्षा शुद्धधपनो मानें, त्रा केवली आप मानें महाविपरीति होय । तातें आपकों द्रव्यपर्यायरूप अवलोकना । द्रव्यकरि सामान्यस्वरूप अबलोकना, पर्यायकरि अवस्थाविशेष अवधारना । ऐसें ही चितवन किए सम्यग्दृष्टी हो है । जाते सांचा अवलोके बिना सम्यग्दृष्टी कैसे नाम पावै । बहुरि मोचमार्गविषै तो रागादिक मेटनेका श्रद्धधान ज्ञान आचरण करना है । सो तौ विचार ही नाहीं । आपका शुद्ध अनुभवतें ही आपकों सम्यग्दृष्टी मानि अन्य सर्व साधनिका निषेध करे है, शास्त्राभ्यास करना निरर्थक बतावे है, द्रव्यादिकका गुणस्थान मागंणा त्रिलोकादिका विचारक विकल्प ठहरा है, तपश्चरण करना वृथा क्लेश करना माने है, व्रताविकका करना बंधन में परना ठहरावे है, पूजना इत्यादि सर्वकार्यनिकों शुभास्त्रवं जानि हेय प्ररूपै है, इत्यादि सर्व सानिक उठाय प्रमादी होय परिणमै है । सो शास्त्राभ्यास निरर्थक होय, तौ मुनिनकै भीतो ध्यान अध्ययन दोय ही कार्य मुख्य हैं । ध्यानविषै उपयोग न लागे, तव अध्ययनहीबिषै उपयोगकूं लगावे हैं, अन्य ठिकाना बीचमें उपयोग लगावने योग्य है नाहीं । बहुरि ३०४
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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