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________________ K मोमा प्रकाश अर दातार लोभीकों नीचा माने, ताते वाकै सर्वथा महंतता न भई । यहां कोऊ कहै, निग्रंथ भी तो आहार ले हे ताका उत्तर लोभी होय दातारकी सुश्रूषाकरि दीनताते आहार न ले है । तातें महंतता घटै नाहीं । जो लोभी होय, सो ही हीनता पावै है। ऐसे ही अन्य जीव जानने। तातें निग्रंध ही सर्वप्रकार महंततायुक्त हैं। बहुरि निग्रंथविना अन्य जीव सर्वप्रकार गुणवान् नाहीं। ताते गुण निकी अपेक्षा महन्तता अर दोषनिकी अपेक्षा हीनता भासे, तब निःशंक स्तुति करी जाय। IM नाहीं। बहुरि निग्रंथविना अन्य जीव जैसा धर्म साधन करें, तैसा वा तिसते अधिका गृह स्थ भी धर्मसाधन करि सके । तहां गुरुसंज्ञा किसकों होय । तातें बाह्यअभ्यन्तरपरिग्रहरहित निपँथमुनि हैं, सो ही गुरु हैं। यहां कोऊ कहै, ऐसे गुरु तो अवार यहां नाही, तातै जैसे | अरहन्तकी स्थापना प्रतिमा है, तैसें गुरुनिकी स्थापना ए भेषधारी हैं-ताका उत्तर जैसे राजाकी स्थापना चित्रामादिककरि किए तो प्रतिपक्षी नाहीं। भर कोई सामान्य || मनुष्य आपकौं राजा मनावै, तो तिसका प्रतिपक्षी हो है । तैसें अरहंतादिककी पाषाणादि। विषे स्थापना बनावे, तो तिनका प्रतिपक्षी नाहीं अर कोई सामान्य मनुष्य आपकों मुनि मनावै, तो वह मुनिनिका प्रतिपक्षी भया । ऐसे ही स्थापना होती होय, तो अरहंत भी आपकों | मनायो । बहुरि उनकी स्थापना होय, तो बाह्य तो ऐसे ही भए चाहिये। वे निग्रंथ ए बहुत 0 0000000-00-00agonadosiOTOGoaasion-actonizeio G4 PRICE 30-00000000000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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