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मो.मा.
प्रकाश
कल्पनामात्र ही देव हैं। सो तिनिका सेवन कार्यकारी केसें होय । बहरि केई व्यंतरादिक , | सो ए काहूका भला बुरा करनेकौं समर्थ नाहीं । जो वै ही समर्थ होय, तो वे ही कर्ता ठहरें।।
सो तो उनका किया किछू होता दीसता नाहीं। प्रसन्न होय, धनादिक देय सकें नाहीं। | द्वेषी होय बुरा कर सकते नाहीं । इहां कोऊ कहै--दुःन तो देते देखिए है, मानेते दुःख देते |
रहि जाय हैं । साका उत्तर,___ या पापका उदय होय, तब ऐसी ही उनके कुतूहल बुधि होय ताकरि चेष्टा करें।। चेष्टा करतें यह दुःखी होय । बहुरि कुतूहलते वै किछ कहें अर यह उनका कह्या न करे, तत्र यह चेष्टा करनेते रहि जाय । बहुरि याकों शिथिल जानि कुतूहल किया करें । बहुरि । जो याकै पुण्यका उदय होय, तो किछू कर सकते नाहीं। सो दिखाइये है-कोऊ जीव | उनकों पूजे नाही वा उनकी निंदा करे, तो वै भी उसते द्वेष करें। परन्तु ताकों दुःख देइ । सकें नाहीं । वा ऐसे भी कहते देखिए है, जो हमकों फलाना माने नाहीं, सो उसते हमारा
वश नाहीं । ताते व्यंतरादिक किछू करणेकों समर्थ नाहीं । याका पुण्यपापही दुःख हो है। । उनके माने पूजे उलटा रोग लागे है । किछू कार्यसिद्धि नाहीं। बहुरि ऐसा जानना-जे क-14 Iल्पित देव हैं, तिनका भी कहीं अतिशय चमत्कार होता देखिए है, सो ध्यंतरादिककरि क्रिया
हो है। कोई पूर्व पर्यायविषे इनका सेवक था, पीछे मरि व्यंतरादि भया, तहां ही कोई निमित!
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