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________________ मो.मा' बांधना, शौचादिक थोरा करना, इत्यादि कार्यनिकी मुख्यता करें हैं। सो मेलयुक्त पाटीके थूकप्रकाश का संबन्धत जीव उपजें, तिनका तौ यत्न नाहीं अर पवनकी हिंसाका यल बतावें । सो नासि-|| | काकरि बहुत पवन निकसै, ताका तो यत्न करते ही नाहीं बहुरि जो उनके शास्त्रके अनुसारि | | बोलनेहीका यत्न किया, तो सर्वदा काहेकौं राखिए । बोलिए, तब यल कर लीजिये । बहुरि जो कहें-भूलि जायं । तो इतनी भी याद न रहै, तो अन्य धर्मसाधन कैसे होगा । बहुरि शौचा- ||| | दिक थोरे करिए, सो संभवता शौच तो मुनि भी करै हैं। ताते गृहस्थकों अपने योग्य शौच | || करना । स्त्रीसंगमादिकरि शौच किए बिना सामायिकादि क्रियाकरनेते अविनय विक्षिप्तताधा|| दिकरि पाप उपजें। ऐसें जिनकी मुख्यता करें, तिनका भी ठिकाना नाहीं। अर केई दयाके I| अंग योग्य पाले हैं। हरितकायत्याग आदि करें, जल थोरा नाखें, इनका हम निषेध करते | नाहीं । बहुरि इस अहिंसाका एकांत पकड़ि प्रतिमा चैत्यालयपूजनादि क्रियाका उत्थापन करै हैं। | सो उनहीके शास्त्रानिविषै प्रतिमाआदिका निरूपण है, तार्को आग्रहकरि लोपै हैं। भगवनीसूत्र | विषै ऋद्धिंधारी मुनिका निरूपण है। तहां मेरुगिरिआदिविषे जाय “तत्थ चेययाई बंदई” ऐसा पाठ है। याका अर्थ यह-तहां चैत्यनिकों बंद है। सो चैत्य नाम प्रतिमाका प्रसिद्ध है। बहुरि वै हठकरि कहे हैं—चैत्य शब्दके ज्ञानादिक अनेक अर्थ निपजै हैं, सो अन्य अर्थ है प्रतिमाका अर्थ नाहीं। याकों पूछिए है—मेरुगिरि नंदीश्वरद्वीपविषे जाय तहां चैत्यबंदना करी, सो तहां ।। २४५ createstayN00150100100000DivoRDoo85700-800000000000000000KG/000000010CROIGAgoatsawesome foooooooooootc000000000000000000000000000000000000000103300000000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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