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________________ प्रकाश 600-1000 మందికి मा० ही दीक्षा दें। सो ऐसे त्याग करें अर त्याग करते ही किछु विचार न करें, जो कहा त्याग करो हो । पीछे पालें भी नाहीं अरं ताकौं सर्व साधु माने। बहुरि यह कहें,-पीछे धर्मबुद्धि | | होय जाय, तब तो याका भला हो है । सो पहले ही दीक्षा देनेवालेने प्रतिज्ञाभंग होती जाणि प्रतिज्ञाभंग कराई, अर याने प्रतिज्ञा अंगीकारकरि भंग करी, सो यह पाप कौनकौं लाग्या ।। | पीछे धर्मात्मा होनेका निश्चय कहा। बहुरि जो साधुका धर्म अंगीकारकरि यथार्थ न पाले, | ताकौं साधु मानिए के न मानिए । जो मानिए, तो जे साधु मुनि नाम धरावै हैं, अर भ्रष्ट हैं, | तिन संबनिकों साधु मानौं। न मानिए, तौ इनकै साधुपना न रह्या । तुम जैसे आचरणतें साधु मानौ हौ, ताका भी पालना कोऊ विरला पाईए है। सबनिकों साधु काहेकौं मानौ हो यहां कोऊ कहें-हमतो जाकै यथार्थ आचरण देखेंगे, ताकौं साधु मानेंगे औरकों न मानेंगे। ताकौ पूछिए है—एकसंघविर्षे बहुत भेषी हैं। तहाँ जाकै यथार्थ आचरण मानौ हो, सो यह || औरनिकौं साधुमान है कि न माने है, जो माने है तो तुमतें भी अश्रद्धानी भया, ताकौं पूज्य कैसें मानौ हौं। अर न माने है, तो उनसेती साधुका व्यवहार काहेकौं वर्ते है। बहुरि आप तौ उनकों | साधु न मानें अर अपने संघविर्षे राखि औरनि पासि साधु मनाय औरनिकों अश्रद्धानी करे, || ऐसा कपट काहेकौं करै। बहुरि तुम जाकों साधु न मानोगे, तब अन्य जीवनिकौं भी ऐसा || ही उपदेश देवोगे इनकौं साधु मति मानौं, ऐसें धर्मपद्धतिविषै विरुद्ध होय । अर जाकों तुम 20vgpశంలోని Kavం నిరంతరం २४
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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