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________________ मो.मा. प्रकाश రాం రాం రంగులు निरूपण करें, तो उस छलकरि अन्य कषायकौं पोषण करैं हैं। जैसे गृहकार्य छोरि परमेश्वरका | भजन करना ठहराया, अर परमेश्वर का स्वरूप सरागी ठहराय उनकै आश्रय अपने विषय || कषाय पोर्षे हैं । बहुरि जैनधर्मविष देव गुरु धर्मादिकका स्वरूप वीतराग ही निरूपणकरि केवल | वीतरागताही कों पोषे हैं, सो यह प्रगट है । हम कहा कहें, अन्यमती भतृहरि तानें वैराग्यप्रकरणविषै ऐसा कह्या है एको रागिषु राजते प्रियतमादेहार्द्धधारी हरो, नीरागेषु जिनो विमुक्तललनासङ्गो न यस्मात्परः । दुर्वारस्मरबाणपन्नगविषव्यासक्तमुग्धो जनः, शेषः कामविडंबितो हि विषयान् भोक्तुं न मोक्तुंक्षमः॥१॥ १वैराग्यप्रकरणमें नहीं किन्तु शृंगारप्रकरण (शतक ) में यह ६७ नं० का श्लोक है। न जाने वैराग्यप्रकरण कैसे लिख गया है। __२ रागी पुरुषों में तो षक महादेव शोभित होता है, जिसने अपनी प्रियतमा पार्वतीको आधे शरीर में धारण कर रक्खा है और विरोगियों में जिन देव शोभित होते हैं जिनके समान स्त्रियों का संग छोड़नेबाला दूसरा कोई नहीं। शेष लोग तो दुर्निवार कामदेवके वाणरूप सवों के विषसे मूच्छित हुए हैं, जो कामकी विडम्बनासे न तो विषयोंको भलीभांति भोग ही सकते हैं और न छोड़ हीसकते हैं। DoroopcfOORECOOKSCHOOpolpopco-043000-36001p60048001016loopero-oporoDOTO015080012000150Moopchootkar నిరంతరం అందరం
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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