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मो.मा. प्रकाश
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स्वच्छंद वृत्तिका उपदेश है सो ऐसे तो जगत् खयमेव ही प्रवत्र्ते है। तहां शास्त्रादि बनाय । कहा भला होने का उपदेश दिया । बहुरि तू कहेगा तपश्चरण शील संयमादि छुड़ावनेकै अर्थि
उपदेश दिया तौ इनि कार्यनिविष तौ कषाय घटनेते आकुलता घटे है तातै यहां ही सुखी होना हो है यश आदि हो है तू इनिकौं छुड़ाय कहा भला करै है। विषयासक्त जीवनिकों | सुहावती वातै कहि, अपना वा औरनिका बुरा करने का भय नाहीं। स्वच्छन्द होय विषय | सेवन के अर्थि ऐसी झूठी युक्ति वताव है। ऐसे चार्वाकमतका निरूपण किया।
___ इस ही प्रकार अन्य अनेक मत हैं ते झूठी युक्ति बनाय विषयकषायासक्त पापी जीवनि| करि प्रगट किए हैं। तिनिका श्रद्धानादिकरि जीवनिका बुरा हो है। बहुरि एक जिनमत है| | सो ही सत्यार्थका प्ररूपक है । सर्वज्ञ वीतराग देवकरि भाषित है। तिसका श्रद्धानादिक करि
ही जीवनिका भला हो है। सो जिनमत विष जीवादि तत्त्व निरूपण किए हैं। प्रत्यक्ष, परोक्ष | दोय प्रमाण किए हैं। सर्वज्ञ वीतराग अर्हन्त देव हैं। बाह्य अभ्यन्तर परिग्रह रहित निम्रन्थ
गुरु हैं । सो इनिका वर्णन इस ग्रंथविषे आगें विशेष लिखेंगे, सो जानना । यहां कोऊ कहै| तुम्हारे रागद्वेष है, तातै तुम अन्य मत का निषेधकरि अपने मतकों स्थापो हो, ताकौं | कहिए है__ यथार्थ वस्तुके प्ररूपण करनेविषै रागद्वेष नाहीं । किछू अपना प्रयोजन विचारि अन्यथा