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________________ मो.मा. प्रकाश -NOMICCOOLaccoraco-o-Ocroo-5010000000000000 C00000000000నించుని నిం00000000000 पचीस तत्व कहै हैं । सो ए कल्पित हैं । जाते राजसादिक गुण आश्रयविना कैसे होय । इनिका आश्रय तौ चेतनद्रव्य ही संभव है। बहुरि बुद्धि इनितै भई कहै सो बुद्धि नाम तो। ज्ञान का है। कोई ज्ञानगुणका धारी पदार्थविषै ए होते देखिए है। इनितें ज्ञान भया कैसे मानिए । कोई कहै, बुद्धि जुदी है ज्ञान जुदा है तो मन तो आगें षोडशमात्राविषै कह्या अर ज्ञान जुदा कहोगे तो बुद्धि किसका नाम ठहरेगा। बहुरि तिसते अहंकार भया कह्या, सो परवस्तुविषै 'मैं करूं हूं' ऐस माननेका नाम अहंकार है। साक्षीभूत जाननेकरि तौ अहं|कार होता नाहीं । ज्ञानकरि उपज्या कैसे कहिए है। बहुरि अहंकारकरि षोड़श मात्रा उपजी कहीं। तिनिविषे पांच ज्ञानइंद्रिय कहीं। सो शरीरविषै नेत्रादि आकाररूप द्रव्येन्द्रिय हैं सो | तो पृथ्वी आदिवत् देखिए है। अन्य वर्णादिकके जाननेरूप भावइंद्रिय हैं सो ज्ञानरूप हैं। अहंकारका कहा प्रयोजन है । अहंकार बुद्धि रहित कोऊ काहूंकू दीखे है। तहां अहंकारकरि निपजना कैसे संभवै । बहुरि मन कह्या, सो इंद्रियवत् ही मन है। जाते द्रव्यमन शरीररूप है, भावमन ज्ञानरूप है । बहुरि पांच कर्मेंद्रिय कहीं, सो ए तो शरीरके अंग हैं। मूर्तीक हैं। | अहंकार अमूर्तीकतै इनिका उपजना कैसैं मानिए । बहुरि कर्मइन्द्रिय पांच ही तौ नाहीं। शरीरके सर्व अंग कार्यकारी हैं । बहुरि वर्णन तो सर्व जीवाश्रित है, मनुष्याश्रित ही तो नाही, | तातै सू िपूंछ इत्यादि अंग भी कर्मइन्द्रिय हैं। पांचहीकी संख्या कैसे कहिए है। बहुरि १८६ PROORDcfootackootocfoo-acroof00oo-acoo-26-06GGrow-to-of
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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