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मो.मा. प्रकाश
खोटा द्रव्य चाले नाहीं तैसें सांच मिलाए विना झूठ चाले नाहीं । परंतु सर्वके हित प्रयोजनविर्षे | विषयकवायका ही पोषण किया है। जैसे गीताविषै उपदेश देय रारी (युद्ध) करावनेका ही प्रयोजन प्रगट किया। वेदान्तविषै शुद्ध निरूपणकरि स्वछंद होनेका प्रयोजन दिखाया । ऐसें ही जानना । बहुरि यह काल तौ निकृष्ट है सो इसविर्षे तो निकृष्ट धर्महीकी प्रवृत्ति विशेष हो है। देखो, इस कालविणे मुसलमान बहुप्रधान हो गए। हिंदू घटि गए। हिंदूनिविषे और बढ़ि गए,जैनी घटि गए सो यह कालका दोष है । ऐसें यहां अवार मिथ्याधर्मकी प्रवृत्ति बहुत पाईए है । अब पंडितपनाके बलकरि कल्पितयुक्तिकरि नाना मत स्थापित भए हैं तिनिविषे जे तत्त्वादिक मानिए है तिनिका निरूपण कीजिए है। तहां सांख्यमतविषै पच्चीस तत्त्व माने हैं सो कहिए है,सत्व,रज,तमः यह तीनगुण कहै हैं । तहां-सत्कारप्रसाद हो है रजोगुणकरि चित्तकी चंचलताहो है तमोगुणकरि मूढ़ता हो है इत्यादि लक्षण कहै हैं। इनिरूप अवस्था ताका नाम प्रकृति है। बहुरि तिसते बुद्धि उपजै है याह का ।। नाम महत्तत्वहै । बहुरि तिसते अहंकार निपजे है। बहुरि तिसते सोलहमात्रा हो हैं। तहां पांच तौ । ज्ञानइंद्रियहो हैं-स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु, श्रात्र । बहुरि एक मन हो है। बहुरि पांच कर्मेंद्रिय हो हैं -चन, चरन, हस्त, गुदा, लिंग । बहुरि पांच तन्मात्रा हो है-रूप, रस,गंध, स्पर्श, शब्द । बहुरि रूपते अग्नि, रसते जल, गंधते पृथ्वा, स्पर्शते पवन, शब्दतें आकाश,ऐस भया कहै हैं। ऐसे चौईस तत्व तौ प्रकृतिस्वरूप हैं। इनित भिन्न निर्गुण कर्ता भोक्ता एक पुरुष है। ऐसे