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________________ मो.मा. प्रकाश | देखी, यामें कहा सिद्धि है । बहुरि ऐसे साधननिते किंचित् अतीत अनागतादिकका ज्ञान होय वा वचनसिद्धि होय वा पृथ्वी आकाशादिवि गमनादिककी शक्ति होय वा शरीरविर्षे आरोग्यादिक होय तौ ए तो सर्व लौकिक कार्य है। देवादिककै स्वयमेव ऐसी ही शक्ति पाइए है । इनित किछु अपना भला तो होता नाहीं, भला तो विषयकषायकी वासना मिटे होय । | सो ए तो विषय कषाय पोषने के उपाय हैं। तातै ए सर्व साधन किछू हितकारी है नाहीं । | इनिविर्षे कष्ट बहुत है मरणादि पर्यंत होय अर हित सधै नाहीं । तातै ज्ञानी ऐसा खेद न करैहै। कषायी जीव ही ऐसे साधनविषै लागे हैं । बहुरि काहूकौं बहुत तपश्चरणादिककरि मोक्षका साधन कठिन बतावै हैं काहूकौं सुगमपने ही मोक्ष भया कहें। उद्धवादिकौं परम भक्त कहें तिनकों तौ तपका उपदेश दिया कहें अर वेश्यादिककै विना परिणाम केवल नामादिकहीत तिरना बतावे किछु थल है नाहीं। ऐसें मोक्षमार्गको अन्यथा प्ररूप हैं। बहुरि मोक्षस्वरूपकों भी अन्यथा प्ररूप हैं । तहां मोक्ष अनेक प्रकार बतावै हें । एक तो || मोक्ष ऐसा कहै हैं -जो बैकुंठधामविषे ठाकुर ठकुरानीसहित नानाभोगविलास करें हैं तहां | जाय प्राप्त होय अर तिनिकी टहल किया करै सो मोक्ष है । सो यह तौ विरु द्ध है । प्रथम तो ठाकुर भी संसारीवत् विषयासक्त होय रहा है । तो जैसा राजादिक हैं तैसा ही ठाकुर भया । बहुरि अन्य पासि टहल करावनी हुई तव ठाकु रकै पराधीनतापना भया । बहुरि यह मोक्षकों CEO-900-00-aomrodai+-00-10000foogoloradorc0000000000rkafonsonasooasirrork
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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