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________________ मो.मा అని 2017 प्रकाश న 0 कहा होयगा सा विचार किछु नाहीं । झूठे लौकिक प्रयोजनके कारन ठहराय जगतकों भ्रमावै| हैं। बहुरि कहै हैं-विधाता शरीरकों घड़े है, यम मार है, मरते समय यमके दूत लैनै आवै | हैं, मूए पीछे मार्गविषै बहुतकाल लागै है, तहां पुण्य पापका लेखा हो है, तहां दंडादिक देवै | हैं । सो ए कल्पित झूठी युक्ति हैं । जीव तो समय समय अनन्ते उपजें मरें हैं तिनिका युगपत् | || कैसे इसप्रकार संभवै अर ऐसे माननेका कोई कारण भी भासे नाहीं । बहुरि मूए पीछे श्राद्धा| दिककरि वाका भला होना कहें सो जीवतां तो काहूके पुण्यपापकरि कोई सुखी दुखी होता | दीखै ही नाहीं, मूए पीछे कैसे होय । ए युक्ति मनुष्यनिकों भ्रमाय अपने लोभ साधनेके अर्थि | बनावे हैं । कीड़ी पतंग सिंहादिक जीव भी तो उपजै मरे हैं सो उनकौं प्रलयके जीव ठहरावै । | तहां जैसें मनुष्यादिककै जन्म मरण होते देखिए है, वैसे ही उनके होते देखिए है। झूठी कल्पना किए कहा सिद्धि है । बहुरि वै शास्त्रनिविषै कथादिक निरूपै हैं तहां विचार किए विरुद्ध भास है । बहुरि यज्ञादिक करना धर्म ठहरावै हैं । तहां बड़े जीवनिका होम करे हैं, अन्नादिक का महा आरंभ करै हैं, तहां जीवघात हो है सो उनहीके शास्त्रविषैवा लोकविष हिंसाका निषेध | है परंतु ऐसे निर्दय हैं किछु गिनै नाहीं । अर कहें-"यज्ञार्थं पशवः सृष्टाः" ए यज्ञहीकै अर्थि | पशु बनाए हैं। तहां घातकरनेका दोष नाहीं । बहुरि मेघादिकका होना शत्रु आदिका विनशना | इत्यादि फल दिखाय अपने लोभके अर्थि राजादिकनिकों भ्रमावै । जैसे कोई विषत जीवना| १७२ 091-సంఘంత్రం అనంతం
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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