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________________ मो.मा. प्रकाश स्वरूप भया है ? जो जुदे नवीन उत्पन्न भए हैं तो ए न्यारे भए ब्रह्म न्यारा रहा सर्वव्यापी अद्वैतब्रह्म न ठहरथा । बहुरि जो ब्रह्म ही इन स्वरूप भया तौ कदाचित् लोक भया कदाचित् ब्रह्म भया तो जैसाका तैसा कैसे रह्या ? बहुरि वै कहैं हैं जो सब ही ब्रह्म तौ लोकस्वरूप न हो है वाका कोई अंश ही है । ताकौं कहिए है, जैसें समुद्रका एक बिंदु विषरूप भया तहां स्थूलदृष्टिकरि तौ गम्य नाहीं परन्तु सूक्ष्मदृष्टि दिए तौ एकबिन्दुअपेक्षा समुद्रकै अन्यथापना भया । तैसें ब्रह्मका एक अंश भिन्न होय लोकरूप भया । तहां स्थूलविचारकरि तौ किछू गम्य नाहीं परन्तु सूक्ष्मविचार किया तो एक अंशअपेक्षा ब्रह्मकै अन्यथापना भया । यह अन्यथापना और तौ काहूकै भया नाहीं । ऐसें स्वरूप ब्रह्मकों मानना भ्रम ही है । बहुरि एक प्रकार यह है, — जैसें आकाश सर्वव्यापी है तैसें सर्व व्यापी है । सो इस प्रकार माने है तो आकाशवत् बड़ा ब्रह्मकौं मानि वा जहां घटपटादिक हैं तहां जैसे आकाश है तैसें तहां ब्रह्म भी है ऐसा भी मानि । परन्तु जैसें घटपटादिककौं अर आकाशकों एक ही कहिए तो कैसे बनें तैसें लोककौं र ब्रह्मकौं एक मानना कैसें संभवे ? बहुरि आकाशका तौ लक्षण सर्वत्र भासै है ता ताका तौ सर्वत्र सद्भाव मानिए है । ब्रह्मका तौ लक्षण सर्वत्र भासता नाहीं तातै ताका सर्वत्र सद्भाव कैसें मानिए ? ऐसें या प्रकारकरि भी सर्वरूप ब्रह्म नाहीं है । ऐसें ही विचारकर किसी भी प्रकारकरि एक ब्रह्म संभवे नाहीं । सर्व पदार्थ भिन्न १४७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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