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मो.मा. प्रकाश
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तातें एक है । वा जैसें सोनाका गदा (पांसा) एक था सो कंकण कुंडलादिरूप भया बहुरि मिलिकरि । | सोनाका एक गदा होय जाय। तैसें ब्रह्म एक था पीछे अनेकरूप भया बहुरि एक होयगा| ताते एक ही है। इस प्रकार एकस्व मान है तौ जब अनेकरूप भया तब जुस्या रह्या कि भिन्न भया। जो जुस्या कहैगा तोपूर्वोक्त दोष आवैगा भिन्न भया कहेगा तौ तिसकाल तौ एकत्व न | रह्या। बहुरि जल सुवर्णादिककौं भिन्न भए भी एक कहिए है सो तो एकजातिअपेक्षा कहिए है। सर्व | | पदार्थनिकी एक जाति भासै नाहीं। कोऊ चेतन है कोऊ अचेतन है इत्यादि अनेकरूप हैं || तिनकी एक जाति कैसे कहिए । बहुरि जाति अपेक्षा एकत्व मानना कल्पनामात्र पूर्वं कह्या ही है । बहुरि पहिले एक था पीछे भिन्न भया मानै है तो जैसे एक पाषाणादि फूटि टुकड़े होय
जाय हैं तैसें ब्रह्मके खण्ड होय गए बहरि तिनिका एकठा होना माने है तौ तहां तिनिका स्वरूप || भिन्न रहै है कि एक होय जाय है। जो भिन्न रहै है तौ तहां अपने अपने स्वरूपकरि भिन्न
ही है। अर एक होय जाय तो जड़ भी चेतन होय जाय वा चेतन जड़ होय जाय । तहां अनेक वस्तूनिका एक वस्तु भया तब काहू कालविर्षे अनेक वस्तु काहू कालविषै एक वस्तु ऐसा कहना बने। अनादि अनन्त एक ब्रह्म है ऐसा कहना बनै नाहीं। बहुरि जो कहेगा लोकरचना होते वा न होते ब्रह्म जैसाका तैसा ही रहै है ताते ब्रह्म अनादि अनन्त है । सो हम पूछे हैं लोकविषै पृथिवी जलादिक देखिए है ते जुदे नवीन उत्पन्न भए हैं कि ब्रह्म ही इन
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