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मो.मा. प्रकाश
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है सो जानना,
कुदेव कुगुरु कुधर्म अर कल्पित तत्त्वनिका श्रद्धान सो तो मिथ्यादर्शन है । बहुरि जिनिवि विपरीत निरूपणकरि रागादि पोषे होंय ऐसे कुशास्त्र तिनिविषे श्रद्धानपूर्वक अभ्यास सो मिथ्याज्ञान है । बहुरि जिस आचरणविर्षे कषायनिका सेवन होय अर ताकों धर्म-|| रूप अंगीकार करै सो मिथ्याचारित्र है। अब इनका विशेष दिखाइए है, इन्द्र लोकपालइत्यादि । अद्वैतब्रह्म राम कृष्ण महादेव बुद्ध पीर पैगम्बर इत्यादि । बहुरि हनुमान भैरूं क्षेत्र| पाल देवी दिहाड़ी सती इत्यादि । बहुरि शीतला चौथि सांझी गणगोरि होली इत्यादि । बहुरि | सूर्य चन्द्रमा ग्रह ऊत पितर व्यंतर इत्यादि । बहुरि गऊ सर्प इत्यादि । बहुरि अग्नि जल वृक्ष | | इत्यादि । बहुरि शास्त्र दवात बासण इत्यादि अनेक तिनिका अन्यथा श्रद्धानकरि तिनिकों | पूजै । बहुरि तिनकरि अपना कार्य सिद्ध किया चाहै सो वै कार्य सिद्धि के कारन नाहीं ताते ।। ऐसे श्रद्धानकौं गृहीतमिथ्यात्व कहिए है। तहां तिनिका अन्यथा श्रद्धान कैसे हो है सो कहिए है,
अद्वैतब्रह्मकों सर्वव्यापी सर्वका कर्त्ता मानै सो कोई है नाहीं। मिथ्या कल्पना करें हैं। प्रथम वाकों सर्वव्यापी मानै सो सर्व पदार्थ तौ न्यारे न्यारे प्रत्यक्ष हैं वा तिनिके स्वभाव न्यारे न्यारे देखिए है इनिकों एक कैसें मानिए है। एक मानना तो इनि प्रकारनिकरि है