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मो.मा. प्रकाश
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दर्शन कह्या । ऐसे लक्षणभेदतै मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान जुदा कह्या । या प्रकार मिथ्याज्ञानका | स्वरूप कह्या। इसहीकों तत्त्वज्ञानके अभावतें अज्ञान कहिए है। अपना प्रयोजन न सधै ताते
याहीकों कुज्ञान कहिए है । अब मिथ्याचारित्रका स्वरूप कहिए है,| झूठी परस्वभावरूप प्रवृत्ति किया चाहै सो बनै नाहीं तात याका नाम मिथ्याचरित्र है । सो दिखाइए है-अपना स्वभाव तौ दृष्टा ज्ञाता है सो आप केवल देखनहारा जाननहारा तो रहे नाहीं। जिन पदार्थनिकों देखे जाने तिनविषै इष्ट अनिष्टपनों मानै तातें रागी द्वेषी होय काहूका सद्भावकौं चाहै काहूका अभावकों चाहै । सो उनका सद्भाव अभाव याका किया होता नाहीं। जातें कोई द्रव्यको कर्त्ता है नाहीं। सर्व द्रव्य अपने अपने स्वभावरूप परिणमै हैं। यह वृथा ही कषायभावकरि आकुलित हो है। बहुरि कदाचित् जैसे आप चाहै तैसें ही | पदार्थ परिणमें तो अपना परिणमाया तो परिणम्या नाहीं। जैसैं गाड़ा चालै है अर वाकों बालक धकोयकरि ऐसा माने कि याकों में चलाऊं हूं सो वह असत्य माने है ! जो वाका चलाया चाले है तो वह न चालै तब क्यों न चलावै ? तैसे पदार्थ परिणमें हैं अर उनकों यह जीव अनुसारि होयकरि ऐसा मानै जो याकों में ऐसे परिणमावों हौं सो यह अंसत्य मान है। | जो याका परिणामाया परिणमै तौ वै तैसें न परिणमें तब क्यों न परिणमावै ? सो जैसे आप चाहै तैसें तौ पदार्थका परिणमन कदाचित् ऐसे ही बनाव बनै तब हो है । बहुतपरिणमन तो