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________________ मो.मा. प्रकाश संयोगादि कार्य बने है सो वह भी कर्मके अनुसार बने है। तातै तिनिका उपायकरि वृथा । ही खेद करे है। ऐसें निर्जरातत्त्वका अयथार्थ श्रद्धान हो है। बहुरि सर्व कर्मबन्धका अभाव ताका नाम मोक्ष है। जो बन्धकौं वा बन्धजनित सर्व दुखनिकों नहीं पहिचानै ताकै मोक्षका यथार्थ श्रद्धान कैसे होइ। जैसे काहूकै रोग है वह तिस रोगकौं वा रोगजनित दुखनिकौं न । | जानै तौ सर्वथा रोगके अभावकों कैसें भला जाने ? बहुरि इस जीवके कर्मका वा तिनिकी | शक्तिका तौ ज्ञान नाहीं तानै बाह्यपदार्थनिकौं दुखका कारन जानि तिनकै सर्वथा अभाव करनेका उपाय करै है। अर यह तो जानै सर्वथा दुख दूरि होनेका कारन इष्ट सामग्रीनिकौं । मिलाय सर्वथा सुखी होना सो कदाचित् होय सकै नाहीं। यह वृथा ही खेद करै है । ऐसें । मिथ्यादर्शनतै मोक्षतत्त्वका अयथार्थ ज्ञान होनेते अयथार्थ श्रद्धान हो है । या प्रकार यह जीव मिथ्यादर्शन” जीवादि सप्त तत्त्वप्रयोजनभूत हैं तिनिका अयथार्थ श्रद्धान करै है। बहुरि पुण्य| पाप हैं ते इनिके विशेष हैं। सो इन पुण्य पापनिकी एक जाति है तथापि मिथ्यादर्शन | पुण्यकौं भला जाने है । पापकों बुरा जाने है । पुन्यकरि अपनी इच्छाके अनुसार किंचित् कार्य बने है, तार्को भला जाने है। पापकरि इच्छाके अनुसार कार्य न बनै ताकों बुरा जाने है सो दोन्यौं ही आकुलताके कारन हैं तातै बुरे ही हैं । बहुरि यह अपनी मानिनै तहां सुखदुख मान | है। परमार्थतें जहां आकुलता है तहां दुख ही है । तातै पुण्यपापके उदयौं भला बुर जानना १२५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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