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________________ मो.मा. प्रकाश आगामी दुख उपजावेंगे तिनिकौं ऐसें न मानै है आप भला जानि इन भावनिरूप होइ प्रवः । है। बहुरि यह दुखि तो अपने इन मिथ्यात्वकषायभावनित होइ अर वृथा ही औरनिकों दुख उपजावनहारे मानै। जैसे दुखी तो मिथ्यात्वश्रद्धाननै होइ अर अपने श्रद्धानके अनुसार जो पदार्थ न प्रवर्ते ताको दुखदायक माने। बहुरि दुखी तो क्रोधते हो है अर जासों क्रोध || किया होय ताको दुखदायक मानै। दुखी तौ लोभतै होइ अर इष्ट वस्तुकी अप्राप्तिकों दुखदायक मानै ऐसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि इनि भावनिका जैसा फल लागै तैसा न भास है। इनकी तीव्रताकरि नरकादिक हो है । मन्दताकरि स्वर्गादिक हो है। तहां घनी थोरी आकु- | | लता हो है सो भासे नाहीं तातै बुरे न लागे हैं। कारन कहा है कि ए आपके किए भासे | तिनकों बुरे कैसें माने। बहुरि ऐसे ही आस्रव तत्त्वका अयथार्थ ज्ञान होते अयथार्थ श्रद्धान | हो है । बहुरि इनि आस्रवभावनिकरि ज्ञानावरणादिकर्मनिका वन्ध हो है । तिनिका उदय होते ज्ञानदर्शनका हीनपना होना, मिथ्यात्वकषायरूप परिणमनि, चाह्य न होना सुखदुखका कारन मिलना, शरीरसंयोग रहना, गतिजातिशरीरादिकका निपजना, नीचा ऊंचा कुल पावना होइ । सो इमिके होनेविष मूलकारन कर्म है। ताकौ तौ पहिचान नाहीं जाते वह सूक्ष्म है याकौं | सूझता नाहीं। अर आपकौं इनि कार्यनिका कर्त्ता दीस नाहीं तातै इनिके हौनेविष के तौ आपकौं कर्ता माने के काहू औरकों कर्ता माने। सर आपका वा अन्यका कर्त्तापना न भासै १२३
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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