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मो.मा. प्रकाश
पुण्यपापादिकरूप तिनिका भी श्रद्धान प्रयोजनभूत है। जातें सामान्यतै विशेष बलवान् है। ऐसें ये पदार्थ तो प्रयोजनभूत हैं तातै इनका यथार्थ श्रद्धान किए तो दुख न होइ सुख होय । अर इनिकों यथार्थ श्रद्धान किए विना दुख हो है सुख न हो है । बहुरि इनि विना अन्य पदार्थ | हे ते अप्रयोजनभूत हैं। जाते तिनिकों यथार्थश्रद्धान करो वा मति करो उनका श्रद्धान किछु || सुखदुखकों कारन नाहीं। इहां प्रश्न उपजै है, जो पूर्व जीव अजीव पदार्थ कहे तिनिविय तो सर्व पदार्थ आय गए तिनि विना अन्य पदार्थ कौन रहे जिनिकों अप्रयोजनभूत कहे। ताका समाधान,
पदार्थ तौ सर्व जीव अजीवविषे ही गर्भित हैं परन्तु तिन जीव अजीवके विशेष बहुत हैं । तिनिविषै जिन विशेषनिकरि सहित जीव अजीवको यथार्थ श्रद्धान किए स्वपरका श्रद्धान | । होय रागादिक दूर करनेका श्रद्धान होय तातें सुख उपजै। अयथार्थ श्रद्धान किए स्वपरका । श्रद्धान न होइ रागादिक दूरि करनेका श्रद्धान न होइ तातै दुख उपजै। तिनिविशेषनिकरि । सहित जीव पदार्थ तौ प्रयोजनभूत जानने। बहुरि तिन विशेषनिकरि सहित जीव अजीवौं । यथार्थ श्रद्धान किए खपरका श्रद्धान न होय वा होय अर रागादिक दूर करनेका श्रद्धान होइ | वा न होइ किछ नियम नाहीं। तिनिविशेषनिकरि सहित जीव अजीव पदार्थ अप्रयोजनभूत जानने । जैसे जीव अर शरीरका चैतन्य मूर्तस्वादिविशेषनिकरि श्रद्धान करना तो प्रयोजनभूत