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________________ मो.मा. प्रकाश चुरावें हैं हास्यादिककरि तिनिकषायनिका कार्यनिविषै प्रवर्तें हैं । बहुरि काहूकै कदाचित् मन्द| कषाय हो है परन्तु थोरे जीवनिकै हो है तातें मुख्यता नाहीं । बहुरि वेदनीयविषै मुख्य असाताका उदय है ताकरि रोग पीड़ा क्षुधा तृषा छेदन भेदन बहुत भारवहन शीत उष्ण अंगभंगादि अवस्था हो है ताकरि दुखी होते प्रत्यक्ष देखिए है । तातैं बहुत न कया है । का कदाचित् किंचित् साताका भी उदय हो है परन्तु थोरे जीवनिकै हो है । मुख्यता नाहीं । बहुरि आयु अंतर्मुहूर्त्त आदि कोटिवर्ष पर्यंत है । तहां घने जीव स्तोक आयुके धारक हो हैं, तातैं जन्म मरनका दुःख पावें हैं । बहुरि भोगभूमियांकी बड़ी आयु है । र उनकै साताका भी उदय है सो वै जीव थोरे हैं । बहुरि नामकर्मकी मुख्यपनै तौ तियंचगति आदि पापप्रकृतिनिका ही उदय है । काहूकै कदाचित् केई पुण्यप्रकृतिनिका भी उदय हो है परन्तु थोरे जीवनिकै थोरा हो है मुख्यता नाहीं । बहुरि गोत्रविषै नीचगोत्रहीका उदय है तातें हीन होय रहे हैं । ऐसें तिर्यंचगतिविषै महादुःख जानने । बहुरि मनुष्यगतिविषै असंख्याते जीव तौ लब्धिअपर्याप्त हैं ते सम्मूर्छन ही हैं तिनिकी तो आयु उश्वासके अठारवें भागमात्र है । बहुरि केई जीव गर्भ में आय थोरै ही कालमें मरन पावै हैं । तिनिकी तौ शक्ति प्रगट भासै नाहीं है । तिनिकै दुख एकेन्द्रियवत् जानना । विशेष है सो विशेष जानना । बहुरि गर्भजनिके ि काल गर्भ में रहना पीछे वाह्य निकलना हो है । सो तिनिका दुखका वर्नन कर्मअपेक्षा पूर्वे १००
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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